क्या होली पर "होली मुबारक" उवाच कर विश करने वाले ईद पर ईद का राम राम बोलने की ज़ुर्रत करेंगे ?
सवाल मुस्लिम भाइयों से नहीं है या उन हिंदुओं से भी नहीं है जिनका मुस्लिमों संग उठना बैठना है. उनका होली मुबारक करना स्वाभाविक प्राकट्य है.
सवाल मुस्लिम भाइयों से नहीं है या उन हिंदुओं से भी नहीं है जिनका मुस्लिमों संग उठना बैठना है. उनका होली मुबारक करना स्वाभाविक प्राकट्य है.
तब नैतिकता का ख्याल नहीं आता जब साथ खड़े अन्य तीन खंभों मसलन, विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया, की चर्चाओं को उनके कहे को संदर्भ से परे ले जाकर गलत व्याख्या की जाती है, उन्हें शर्मसार किया जाता है. तब तो मीलार्ड यूट्यूबर्स की, कंटेंट क्रिएटर्स की, प्लेटफार्म की स्वतंत्र अभिव्यक्ति बता देते है.
कि निर्वाचित महिला पंचों की जगह पतियों ने ले ली पद और गोपनीयता की शपथ ! जय बोलो पंच पति परमेश्वर की, नारी सशक्त हुई तो वह भी सशक्त हुआ ! जो हुआ सो हुआ और जाने भी दो चूँकि यही तो हकीकत है. गलत सिर्फ इतना हुआ कि गलती से वीडियो बन गया और वायरल भी हो गया, नतीजन पोलिटिकल हंगामा बरपा गया ! देश भर में एसपी यानी सरपंच पति और पीपी यानी प्रधान पति या पंच पति को किसी पद की तरह मान लिया गया है. बड़ी संख्या में महिला जन प्रतिनिधियों की जगह उनके पति, भाई या दूसरे रिश्तेदार उनका कामकाज संभालते रहे हैं. यहां तक कि पंचायतों की बैठक तक लेते रहे हैं. महिला विधायक, सांसद और मंत्री तक के मामलों में उनके पति के हस्तक्षेप के मामले भी समय-समय पर सामने आते रहे हैं.
समझ नहीं आता न्यायमूर्ति को हो क्या गया है ? जैन हतप्रभ है, सालासर बाबा (हनुमान) को हर साल सवा मनी चढ़ाई, हर दिवाली लक्ष्मी गणेश का पूजन करता रहा, पूर्ण हिंदू रीति और मान्यताओं के मुताबिक विवाह में सात फेरे लिए, हर मंदिर गए, चारों धाम दर्शन किए, हर माता के दर्शन किए, कुल देवी तो दुर्गा स्वरूप ओसिया माता को ही पूजा, गृह प्रवेश किया तो हवन किया, स्वर्गवासी माता पिता की तेरहवीं की, करवा चौथ और ना जाने क्या क्या व्रत रखे , सावन के हर सोमवार शिव जी को जल चढ़ाया, भागवत सुनी, अनगिनत सुंदरकांड पाठ किए और तो और इस बार महाकुंभ में भी डुबकी लगा आए ! फल क्या मिला ? न्यायमूर्ति ने डिक्लेयर कर दिया हम हिंदू नहीं है !
संतुलित डिजिटल जीवन शैली केवल मानसिक शांति ही नहीं, बल्कि पारिवारिक रिश्तों को भी बचा सकती है, ऐसा दिमाग के एफएमआरआई(फ़ंक्शनल मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग) स्कैन की फाइंडिंग है.
हिंदी में कहावत है सावन के अंधे को हर तरफ हरा ही हरा दिखाई देता है. राइट विंग के नेताओं, बुद्धिजीवियों और समर्थकों ने मुग़ालता पाल लिया है कि लगभग डेढ़ अरब की आबादी वाला भारत इतना बड़ा बाजार है कि सबको उसकी जरूरत है. परंतु देश की आर्थिक हकीकत कुछ और ही है. क्या डेढ़ अरब लोगों का बाजार है ? बिल्कुल नहीं , बाजार कुछ ही लोगों का है.
दरअसल बोलने की आज़ादी और अश्लीलता के मध्य महीन रेखा ही है ! कॉमेडी के लिए अश्लील और असभ्य क्यों हो रहे हैं वे, जो आज सोशल मीडिया पर नामचीन हैं ? उत्तर स्पष्ट है, व्यूअर्स मिलते हैं उन्हें ! तो दोषी दोनों ही हुए ना ! एक लिहाज से देखें तो दीर्घा में बैठे ठहाका लगाने वाले लोगों का दोष ज्यादा है ! चूंकि फ्रीडम ऑफ़ स्पीच है तो क्या इन शोज़ को कॉमेडी करार देकर क्लीन चिट दे दें ? सवाल इसलिए है कि क्या कभी भी, कहीं भी, किसी के द्वारा भावनायें आहत हो सकती है या फिर भावनाओं के आहत होने की बिना पर मामला बना दिया जाए इस कुकृत्य के लिए ! यही महीन रेखा है जिसके अनुरूप वर्जित फल परिभाषित होता है, परंतु जब बात वर्जित फल से आगे निकल जाए तो .............. ! और जब प्रतियोगिता ही होने लगे कि "वो अश्लील भला क्या अश्लील हुआ, जिस अश्लील की चर्चा घर पे हो" ........ क्या ही कहें, वितृष्णा ही होती है !
तक़रीबन डेढ़ दशक पहले बॉलीवुड की स्पर्म डोनर पर बनी फ़िल्म "विकी डोनर" आई थी. बहुतों ने देखी थी और बतौर कॉमेडी खूब एन्जॉय भी की थी. शुजित सरकार ने स्पर्म डोनेशन सरीखे सेंसिटिव सब्जेक्ट को कॉमिक ट्रीटमेंट दिया था और वे सफल भी हुए. स्पर्म डोनेशन के साइंस और इंसानी जिंदगी के इमोशन्स को इस फिल्म में निर्देशक ने बिना किसी उलझन के पेश किया था.
सलीब पर चढाने का फरमान है ब्लैक वारंट ; मृत्यु की तस्दीक है ब्लैक वारंट ! हालांकि उस खल (दुष्ट, अधम) को मृत्यु दंड भी उपयुक्त नहीं है, जबकि मृत्यु से बढ़कर जग में कोई प्रचंड दंड भी तो नहीं है. परंतु यह भी सत्य है कि No black warrant can kill anyone anywhere so long as life is there.
कल ही तो खूब कटाक्ष किया था न्यायमूर्ति ने, बात अपनी बिरादरी की जो थी ! वर्ना तो कभी शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि कोई सिंगापुर भेजने का वादा करे तो चुनाव आयोग कैसे रोकेगा ? वादे हैं वादों का क्या तो वादों पर क्या संज्ञान लें ?
बिल्कुल हालिया चुनिंदा हुई है देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस मौजूदा गृह मंत्री अमित शाह के "कहे" से राजनीतिक सुविधानुसार कुछ शब्दों के एक वाक्य को उठाकर ! कहावत है अर्ध सत्य झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है क्योंकि खड़गे जी सरीखे स्थापित दलित नेता भी ऐसी ही प्रतिक्रिया दे रहे हैं जबकि वे भलीभांक्ति समझते हैं क्या कहा गया था, किस संदर्भ में कहा गया था और क्यों कहा गया था !
वर्ना तो कब गिरफ्तारी हुई है भगदड़ में मौतें होने से ? पिछले दिनों ही भोले बाबा के हाथरस समागम में मची भगदड़ में एक नहीं दो नहीं 116 जानें चली गई थी ! बाबा से पूछताछ भर हुई और क्लीन चिट दे दी गई कि बेचारे श्रद्धालुओं की अंध भक्ति ने बलि ले ली उनकी ! भारत में मंदिरों एवं अन्य धार्मिक आयोजनों के दौरान भगदड़ होने से बड़ी संख्या में लोगों की मौत की घटनायें होती रहती हैं. महाराष्ट्र के मंधार देवी मंदिर में 2005 के दौरान हुई भगदड़ में 340 श्रद्धालुओं की मौत और 2008 में राजस्थान के चामुंडा देवी मंदिर हुई भगदड़ में कम से कम 250 लोगों की मौत ऐसी ही कुछ बड़ी घटनायें थी. हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भी 2008 में ही धार्मिक आयोजन के दौरान मची भगदड़ में 162 लोगों की जान चली गई थी. क्या कभी किसी को गिरफ्तार किया गया ? देवता को तो गिरफ्तार करने से रहे ! परंतु बाबाओं को भी हाथ नहीं लगा सके !
जब से देश में मोदी सरकार है, लोकतंत्र खतरे में 'बताया' जा रहा है ! और INC के सबसे बड़े नेता ऐसा खूब बताते हैं, अजीबोगरीब उदाहरण देकर बताते हैं ; बताने के लिए वे अमेरिका जाते हैं, जबकि 76 % अमेरिकन बताते हैं कि उनकी डेमोक्रेसी खतरे में हैं !
सुना मोदी हट जाए तो नेताजी मरने को भी तैयार है या यूँ कहें कि वे मोदी को हटाकर ही मरेंगे ! भाई इतनी नफरत और घृणा मोहब्बत की दुकान से बंट रही है क्या ? सो वयोवृद्ध नेता जी तब तक जियेंगे जब तक मोदी काबिज़ है, तो सबों को कामना करनी चाहिए कि मोदी बने रहें ; आख़िरकार मोदी है तो उनकी जिंदगानी है ! #LongModiRuleForLongLife क्या सभी नेताओं के लिए उपयुक्त है ?
पाक के साथ "मुल्क" की दुश्मनी शाश्वत है, कल थी, आज है और शायद कल भी रहेगी। भारत में आतंकवाद के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पाक हमेशा लिप्त रहा है. इसी कटु सच्चाई को नकारने का प्रयास परिलक्षित हुआ है इस सीरीज़ में !
पांचों वक्त -फज्र (भोर से पहले), धुहर (दोपहर), अस्र (देर दोपहर), मगरिब (सूर्यास्त के समय), ईशा (रात के समय)- मोदी की लानत मलामत करना अब आपको शोभा नहीं देता ! इस काम के लिए आपके अनेकों बंदे हैं ही मसलन सुप्रिया है, पवन है, सुरजेवाला हैं, अभिषेक हैं और बाकी कुछ बचा तो रमेश हैं ही !
दिन भर खाली हूँ सो अखबार ऐसा मिल जाए कि दिन बर्बाद हो जाए. .......तो बात बन जाए ! फिर मैं तो तीन चार दिनों के अखबार लेकर बैठ जाता हूँ, सरसरी निगाहों से पन्नों को पलटते पलटते कुछ खबरों पर नजर टिक जाती है क्योंकि "woah I feel good" या फिर चौंकने की सी फील जो आ जाती है. और वही कुछ कतरनें शेयर कर लेते हैं.
दरअसल बीजेपी को लगा सुनहरा मौका है ममता सरकार को घेरने का, परंतु यही दांव उल्टा भी पड़ सकता है और संभावना वैसी ही दिख भी रही है. ऐसा नहीं है कि अभी तक हो रहे आंदोलनों, धरना प्रदर्शनों में पोलिटिकल लोग नहीं थे, परंतु किसी ने भी पार्टी विशेष का न तो झंडा लगाया न ही नारे लगाए.
नेताओं में मानो माफी वीर कहलाने की होड़ मची है ! “वह” हतप्रभ है कि क्या हो गया है, क्या सब सावरकर को फॉलो करने लगे हैं ? "उसने" तो कहा था "मैं सावरकर नहीं हूं, मैं गांधी हूं और गांधी माफी नहीं मांगता." सही भी है गांधी जी ने कभी "यंग इंडिया" के संपादक की हैसियत से एक छपे पत्र के लिए उच्च न्यायालय के आदेश पर माफ़ी मांगने से इंकार करते हुए सजा की याचना की थी ! परंतु "इस गांधी" ने तो न्यायालय से थोड़ी बहुत हीलाहवाली के पश्चात् बिना शर्त माफ़ी मांग ली थी ! सो क्या कहें कि "वह" गांधी नहीं है ? जहां तक बात सावरकर की माफ़ी की है तो सावरकर की अंग्रेजों से माफ़ी स्वार्थ परक थी, परंतु स्वार्थ देश का था वरना तो जिसने दस साल सेलुलर जेल की अमानवीय यातनायें सही हों, उसके विषय में ‘माफ़ीनामा’ या ‘दया याचिका' निरूपित करना अनुचित ही है.
गोविंद का जन्मोत्सव खूब धूमधाम से मनाया गया ! वही गोविंद, जिसने महिलाओं की संवेदनाओं और भावनाओं को गहराई से समझा था ! गोविंद कहो या कृष्ण कहो या कान्हा, वही था जिसने नरकासुर के चंगुल से 16000 महिलाओं का उद्धार कर उनके सम्मान की रक्षा की थी ! द्रौपदी के तारण हार थे वे, बुआ कुंती के कठिन समय में उनके साथ खड़े थे ! कुल मिलाकर श्रीकृष्ण महिलाओं की गरिमा के लिए उनकी रक्षा में हमेशा तत्पर थे - एक सखा, प्रेमी और रिश्तेदार के रूप में ! वह तो सुरक्षा, करुणा, कोमलता और प्रेम के देवता हैं, परंतु इस कलियुग में मानो वे रुष्ट हैं !