
हम नहीं कहते, मार्क जुकरबर्ग कह रहा है. दरअसल मार्क ने सामाजिक अलगाव और अकेलेपन से जूझ रहे लोगों को AI संचालित किसी चैटबॉट से जुड़ने की सलाह दी. अपनी बात के लिए उन्होंने यूएस का दिलचस्प आँकड़ा बताया कि औसतन अमेरिकी के तीन से कम दोस्त होते हैं, लेकिन वह 15 तक के दोस्तों की चाहत रखता है और AI निरंतर, व्यक्तिगत बातचीत उपलब्ध कराकर इसी अंतर को पाटने में सक्षम हो सकता है.
एकबारगी लगा मार्क ने मार्के की बात की है. फिर भी सवाल मन में आया क्या मार्क सही है, क्या AI मित्रता पर शत प्रतिशत खरा उतर सकता है, यदि उसे दोस्त बनाया तो ? हाँ, एक बात समझने की है, चूंकि AI कॉमन है, क्या मेरा AI सिर्फ मेरा है, मेरा हम राज है. क्या मेरे दुःख को, मेरी ख़ुशी को, मेरी जिज्ञासा को, मेरे खोने को खुद में आत्म सात करने की क्षमता है AI में ? वह स्वयं समृद्ध होता है इन बातों से, लेकिन भेद नहीं खोलता कि मेरा है. इसलिए कह सकते हैं कि मेरा AI सिर्फ मेरा है, परंतु है तो वह विवेकहीन ही ! डेटा बैंक में डेटा तो मेरा, तुम्हारा, उसका और न जाने किस किस का है, पता नहीं चैटबॉट दोस्त की हैसियत से किसका मुझ पर थोप दे ! एक महत्वपूर्ण बात और, AI से मतलब AI संचालित चैटबॉट से हैं, साथ ही शर्त भी लागू है कि AI और डीप फेक की कोई सहकार्यता संचालन को प्रभावित ना कर सके.
निःसंदेह अकेलापन और सामाजिक वियोग गंभीर समस्या है, लेकिन क्या AI वास्तव में इसका समाधान हो सकता है? भावनात्मक समर्थन के लिए AI पर निर्भर रहना, जुड़ाव की झूठी भावना पैदा कर सकता है और क्या अकेलेपन की भावनाओं को और बढ़ा नहीं देगा ? ठीक है AI साथी के कुछ पहलुओं का साथ देगा, लेकिन क्या इसमें मानवीय मित्रता में निहित गहराई, सहानुभूति और आपसी समझ की कमी नहीं है?
महान ग्रीक दार्शनिक अरस्तु ने सच्ची दोस्ती को मानव कल्याण के लिए आवश्यक बताया था. सवाल है क्या अरस्तु आज भी प्रासंगिक है ? अरस्तु वही है जिन्होंने कहा था, "he who is unable to live in society must be either a beast or God.........man is a social animal......." जो आज भी शाश्वत हैं. तो पहले अरस्तु के डॉक्ट्रिन को समझें तो सही ! अरस्तु के वन लाइनर आजकल के पंचों (puhches) से कम थोड़े ना है !
मित्रों के लिए अरस्तू का शानदार पंच है ,"दोस्तों के बिना कोई भी जीना नहीं चाहेगा ...भले ही उसके पास अन्य सभी चीजें हों." आज भी जान है इस पंच में ! किसी ने प्रेरणा ली और सुपरहिट गाना बना , "ओ साथी रे, तेरे बिना भी क्या जीना ......." एकांत में रहना, चाहे वह चिंतन और बौद्धिक उपलब्धि वाला ही क्यों न हो, दोस्तों के साथ जीवन से कमतर ही है. दोस्ती भावनात्मक समर्थन और एकजुटता प्रदान करके खुशी में योगदान देती है. दोस्ती के ज़रिए ही व्यक्ति अपने गुणों को विकसित कर सकते हैं, सुरक्षा की भावना महसूस कर सकते हैं और अपनी उपलब्धियों को साझा कर सकते हैं. अनेकों अनुसंधान हुए हैं, निष्कर्ष कमोबेश कॉमन है कि एक संतुष्ट जीवन जीने के लिए करीबी दोस्त होना जरूरी है. अनेकों स्टडी बताती हैं कि करीबी दोस्तों की कमी से मृत्यु का जोखिम उतना ही बढ़ सकता है जितना धूम्रपान, शराब पीना या मोटापा.
अरस्तू के कांसेप्ट के मुताबिक़ दोस्तों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है. एक श्रेणी है Utility Based Friendship, ऐसी दोस्ती जो पारस्परिक लाभ पर आधारित होती है. प्रत्येक पक्ष मुख्य रूप से इस बात से चिंतित होता है कि वे दूसरे से क्या हासिल कर सकते हैं. ये काम पर सहकर्मी या पड़ोसी हो सकते हैं जो छुट्टी पर होने पर एक-दूसरे के पालतू जानवरों की देखभाल करते हैं. इन दोस्ती के साथ समस्या यह है कि वे अक्सर क्षणभंगुर होती हैं और एक व्यक्ति द्वारा रिश्ते से लाभ उठाना बंद कर देने के बाद खत्म हो जाती हैं.
दूसरी है Friendship Of Pleasure, जो साझा हितों पर आधारित दोस्ती होती है. ये दोस्ती क्षणभंगुर भी हो सकती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि साझा हित कितने समय तक चलते हैं. भावुक प्रेम संबंध, एक ही बुक क्लब/सोशल क्लब से जुड़े लोग, खेल के साथी खिलाड़ी सभी इस श्रेणी में आते हैं. इस तरह की दोस्ती महत्वपूर्ण है, क्योंकि जब आप अपने जुनून को किसी दूसरे व्यक्ति के साथ साझा कर सकते हैं तो आप उसका अधिक आनंद लेते हैं. लेकिन फिर भी यह दोस्ती का सबसे बेहतरीन रूप नहीं है.
तो फिर परफेक्ट दोस्ती क्या है ? वह दोस्त जो हमें बेहतर बना सकता है, ऐसी दोस्ती कहलाती है सद्गुणी दोस्ती, जिसका आधार है एक दूसरे के गुणों और चरित्र के लिए आपसी सम्मान ! दो लोग जो इस तरह की दोस्ती करते हैं, वे एक दूसरे को उनके वास्तविक रूप में महत्व देते हैं और एक दूसरे की भलाई और नैतिक विकास के लिए गहरी प्रतिबद्धता साझा करते हैं. ऐसी दोस्ती स्थिर और स्थायी होती है. एक सद्गुणी दोस्ती में, प्रत्येक व्यक्ति प्रोत्साहन, नैतिक मार्गदर्शन और समर्थन के माध्यम से दूसरे को खुद का बेहतर संस्करण बनने में मदद करता है.
"पूर्ण मित्रता उन लोगों की मित्रता है जो अच्छे हैं, और गुणों में समान हैं; क्योंकि ये एक दूसरे के लिए समान रूप से भलाई की कामना करते हैं , और वे स्वयं भी अच्छे हैं। अब जो लोग अपने मित्रों के लिए उनके हित की कामना करते हैं, वे सबसे सच्चे मित्र हैं; क्योंकि वे ऐसा अपने स्वभाव के कारण करते हैं, संयोगवश नहीं; इसलिए उनकी मित्रता तब तक बनी रहती है जब तक वे अच्छे हैं - और भलाई एक स्थायी चीज है।"
अरस्तू के अनुसार, एक सद्गुणी मित्र एक दर्पण प्रदान करता है जिसमें व्यक्ति अपने स्वयं के कार्यों, विचारों और निर्णयों पर विचार कर सकता है. जब एक मित्र ईमानदारी, उदारता या करुणा प्रदर्शित करता है, तो दूसरा इन कार्यों से सीख सकता है और अपने अंदर इन गुणों को विकसित करने के लिए प्रेरित हो सकता है.
अब अरस्तू के माणकों पर AI मित्रों को परख लें ! निष्कर्ष निकलता है कि AI चैटबॉट - चाहे कितने भी परिष्कृत क्यों न हों - सच्चे मित्र नहीं हो सकते. वे ऐसी जानकारी प्रदान करने में सक्षम हो सकते हैं जो आपको काम में मदद करती है, या आपकी विभिन्न रुचियों के बारे में हल्कीफुल्की बातचीत में संलग्न हो सकती है. लेकिन उनमें मूल रूप से ऐसे गुणों का अभाव है जो एक सद्गुणी मित्रता को परिभाषित करते हैं.
AI आपसी चिंता या वास्तविक पारस्परिकता में असमर्थ है, जबकि इसे सहानुभूति या प्रोत्साहन का अनुकरण करने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है, यह वास्तव में व्यक्ति की परवाह नहीं करता है - न ही यह अपने यूज़र से कुछ भी मांगता है. इसके अलावा, AI अच्छे जीवन की साझा खोज में शामिल नहीं हो सकता है, एक ऐसा साझा प्रयास जिसमें प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को बुद्धिमानी से और अच्छी तरह से जीने में मदद करता है. इसके लिए उस तरह के नैतिक विकास की आवश्यकता होती है जो केवल मनुष्य ही कर सकते हैं, जो वास्तविक नैतिक चुनौतियों का सामना करते हैं और वास्तविक निर्णय लेते हैं.
निष्कर्ष यही है निःसंदेह AI एक टूल के रूप में सबसे अच्छा है. फ्रेंडशिप ऑफ़ यूटिलिटी और फ्रेंडशिप ऑफ़ प्लेजर को कंट्रीब्यूट इस मायने में कर सकता है कि हंसना है तो जोक सुना देगा, पूछा तो जवाब दे देगा ! कहने का मतलब है एक हद तक, चूंकि सीमा उपयुक्त अनुपयुक्त डेटा की है. AI के होने से ऐसा नहीं है कि आपको दोस्त नहीं चाहिए. AI की संगति वैसे ही डमी है जैसे एक लाइव आईपीएल टी 20 देखना बनाम ड्रीम 11 पर फंतासी क्रिकेट देखना ! कुल मिलाकर सीमित और कार्यात्मक अर्थों में संगति मिलती है, यह परफेक्ट सद्गुणी मित्रता के लिए अरस्तू की कसौटी पर फेल है. AI एक अस्थायी सामाजिक शून्य को भर सकता है, लेकिन यह आत्मा को आहार नहीं दे सकता ! सो दुनिया में तेज़ी से अलगथलग पड़ रहे लोगों के लिए AI मित्रों के उदय को वास्तविक दोस्ती को बढ़ावा देने की तत्काल आवश्यकता के रूप में क्यों ना लिया जाए ?

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