अपनी सेक्सुअल फैंटेसी में जनक-जननी को तो ना आने दो !

ला रहे हो तो विकृति ही कहलाएगी और तुम्हें यौन अपराधी ही माना जाना चाहिए ! फिर जो गुप्त फैंटेसी है उन्हें फ़ाश होने के लिए कामों का टोटा पड़ गया है क्या जो ये बेशर्म औलादें प्रजनकों को ही घसीट ले रही हैं और उतने ही बेशर्म तो वे भी हैं जो वहाँ बैठे हूहूहोहा कर रहे हैं ! 

याद आते हैं हास्य व्यंग्य की विधा के फनकार, लेखक, कलाकार, कवि ! हँसाने के लिए फूहड़ नहीं होना पड़ता था उन्हें ! बात उनकी करें जो फूहड़ भी थे या कभी कभार फूहड़पन पर उतर भी आए या फूहड़ होना पड़ा तो भी उनके द्विअर्थी संवाद या हाव भाव पेरेंट्स तक कभी नहीं पहुंचे ! सख्त निषिद्ध फोर्बिडन गैप मानिंद था जिसे लांघने की जुर्रत कैसे कोई कर सकता था ! वजह प्राकृतिक थी, थोपी हुई नहीं ! 
मंटो, इस्मत, मृदुला या फिर दादा कोंडके, उनकी कथित अश्लीलता औरत मर्द के अंतरंग पलों या बातों को ही उधेड़ती थी, अक्सर उनकी कामुकता उद्देश्यपूर्ण होती थी ! औरत में माँ और मर्द में बाप तो कभी आ ही नहीं सकता था उनकी इरोटिक कल्पनाओं में ! 
बात करें मंटो की कथित अश्लील रचनाओं में शुमार "काली सलवार" की, "बू" की, "धुंआ" की , "ठंडा गोश्त" की , "ऊपर नीचे और दरमियान" की, इस्मत चुगताई की बहुचर्चित "लिहाफ" की, मृदुला गर्ग की "चित्तकोबरा" की,  दादा कोंडके की फ़िल्में "आली अंगावर (शरीर से चिपकने वाली)", "तुमचं आमचं जमलं (तुम्हारी-हमारी जम गई)",  "बोट लावीन तिथे गुदगुल्या (जहां छुओ वहीं गुदगुदी)", "ह्योच नवरा पाह्यजे )मुझे यही पति चाहिए)" की, कहीं कोई भी रचना, सारी की सारी अश्लील मान भी ली जाए, माँ बाप के जॉनर में नहीं घुसती ! थोड़ा अश्लील होकर कहूं तो मस्तराम ने भी इस जॉनर को टच नहीं किया !  

आज कूल डूड आधुनिक दिखने दिखाने के लिए इस जॉनर को एक्सप्लॉइट किया जा रहा है, करने दो ना इन कॉमेडियनों को ! इलाहाबादी हो रैना या फिर ताज़ादम जो आया है वाइब्रेटर गर्ल स्वाति सचदेवा का, उनका एंगल है वर्जना तोड़ने वाला ! उन्हें करने दो ! कैसे रोकोगे ? ज्यादा से ज्यादा अदालतों के, पुलिस के दो चार चक्कर लगा लेंगे ये ! अंततः न्यायालय भी उन्हें फटकार भर लगाकर छोड़ देगी ! जरूर अनैतिक किया है लेकिन न्याय विरुद्ध नहीं ! साथ ही न्यायालय भी भली भांति समझती है कि आजकल शुद्ध और स्वस्थ हास्य बचा ही नहीं है और इन कलाकारों को भी तो घर चलाना है. यही तो हुआ ना शीर्ष न्यायालय में इलाहाबादी के मामले में !                

असल में साफ़ सुथरी कॉमेडी हर किसी के वश की बात नहीं है. व्यूज़, फोल्लोवेर्स , लाइक्स के मोहताज ये कथित स्टैंड अप कॉमेडियन किसी भी हद तक जा सकते हैं. और जब लोग कहने लगते है कि ये लोग किस हद तक गिर रहे हैं तो यकीन कीजिये उनके व्यूज़ बढ़ते हैं, फोल्लोवेर्स भी बढ़ते हैं और लाइक्स भी मिलते हैं क्योंकि बोल्ड जो कहलाते हैं !  

सौ बातों की एक बात, यदि पैरेंट्स कूल हैं इन कॉमेडियनों के तो हम आप अन-कूल हो भी गए, तो क्या होगा ?

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Prakash Jain

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