ईद के जायके को कड़वा कर गया वक्फ बिल !

सवाल है क्या कृषि कानून के मानिंद केंद्र सरकार इसे भी वापस लेगी ?  जवाब है नहीं ! क्योंकि कृषि कानूनों का विरोध जाति से परे था, राजनीति से परे था;  जबकि वक्फ बिल का विरोध राजनीति के लिए है, चूंकि अगुआई राजनीतिक पार्टियों के नेता कर रहे हैं जिनका साथ सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम कर रहे है. 

फिर वक़्फ़ संशोधन बिल का विरोध भी अनमने तरीके से ही हो रहा है. संसद में कुल 23 घंटे चर्चा हुई और किसी भी गांधी सांसद ने कुछ भी नहीं बोला ! राहुल आये आधी रात के बाद मानो सोकर उठे और चले आये, खूब ट्रोल भी हुए अपनी रात्रि पोशाक में और पैरों में स्लीपर पहने चले आने के लिए ; परंतु उवाचा कुछ भी नहीं, प्रियंका तो आई ही नहीं, सोनिया भी चुप ही रही !  महत्वपूर्ण बिल पर भी कुछ नहीं बोला राहुल ने, लेकिन अगले ही दिन शून्य काल में चीन विवाद पर बेतुका सा सवाल कर स्वयं का ही मखौल उड़वा लिया ! उधर उद्धव गुट भी एक्सपोज़ हो गया जब संजय राउत ने स्वीकार कर लिया कि अब जब वक्फ बिल पास हो गया है, हमारे लिए बाइबिल सरीखा है ! 
गांधी परिवार के लिए दक्षिण ने तारणहार का काम हमेशा से किया है. 1977 की हार के बाद इंदिरा जी कर्नाटक के चिकमंगलूर से उप चुनाव जीतकर पुनः संसद में आई थी. 1999 में सोनिया ने भी रिस्क ना उठाते हुए अमेठी के साथ साथ बेल्लारी से भी किस्मत आजमाई थी और सफल हुई थी. हालांकि वे अमेठी से भी चुनाव जीत गई थी. हाल ही जब राहुल रायबरेली से हार गए तब केरल की मुस्लिम बाहुल्य वायनाड सीट ही तारणहार बनी. और पिछले लोकसभा चुनाव में इसी वायनाड से मुस्लिम वोटों की बदौलत प्रियंका ने शायद सबसे ज्यादा मार्जिन तक़रीबन चार लाख वोटों से जीतकर संसद में अपना आगाज किया. वायनाड का मुस्लिम इस कदर नाराज है कि वह प्रियंका द्वारा व्हिप को अनसुना कर संसद में नहीं आने को कलंक बताते हुए कह रहा है कि बिल पर बहस के समय वह कहां थी, यह सवाल हमेशा बना रहेगा।

दरअसल कांग्रेस कोई कट्टर स्टैंड नहीं लेना चाहती थी, क्योंकि आजकल मुस्लिम वोटों की तो बन्दर बाँट होती है, पहले की तरह कौन सा पूरा चक उसे मिल जाता है ? उसे डर था कि बिल पर कट्टर स्टैंड लिया तो उसके जातिगत गणना के दांव की ऐसी तैसी हो जाएगी और बीजेपी हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कर ले जाएगी. सो विरोध के लिए विरोध भर करने का फार्मूला बनाया पार्टी ने और इसी के तहत तय हुआ कि राहुल और प्रियंका नहीं बोलेंगे. 

परंतु रणनीति मात खा गई प्रतीत होती है. बीजेपी की चाल में फंस गई कांग्रेस ! हर क़ानून के संशोधनों के लिए बीजेपी कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराती है और अपनी इस रणनीति में सफल भी होती रही है. परदे के पीछे अन्य विरोधी पार्टियों में एक सहमति बन रही है कि कांग्रेस को साथ लेकर वे बीजेपी को पार नहीं पा सकते क्योंकि कांग्रेस के दामन में ब्लैक स्पॉट्स असंख्य है, 75 सालों में से 54 सालों तक सत्ता में जो रही है. और बीजेपी का हर हमेशा अपर हैंड रहता है, चूंकि इन ब्लैक स्पॉट्स को बखूबी एक्सप्लॉइट जो कर ले जाती है.  

खैर, जो हुआ सो हुआ ! बिल दोनों सदनों से पास हुआ, महामहिम ने मंजूरी दे दी और क़ानून भी बन गया. विपक्षी पार्टियों में भी होड़ लग गई है सुप्रीम कोर्ट में रिट लगाने की, जबकि बेहतर होता सभी मिलकर प्रभावी नुक्तों को आधार बनाकर कानून को चैलेंज करते ! 

वैसे तो सुप्रीम कोर्ट को देश के किसी भी क़ानून  की समीक्षा करने की शक्ति मिली हुई है, मगर वक्फ के मामले में यह संविधान के ढांचे में बदलाव जैसा नहीं लगता है. ऐसे में ज्यादा संभव तो यही है कि इस विधेयक की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट विचार ही न करे. कुल मिलाकर  माने या ना माने बात तो यही है कि आमतौर पर संसद से किसी भी पारित कानून को सुप्रीम कोर्ट रद्द नहीं कर सकता है.  इस संदर्भ में 1973 के ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले में संविधान के बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर व्यापक रूप से हुई चर्चा का जिक्र लाजिमी है. इसमें यह निष्कर्ष निकला था कि एक संवैधानिक संशोधन भी भारतीय संविधान के मूल ढांचे को संशोधित नहीं कर सकता है. और यही फाइनल आउटकम होगा भी यदि शीर्ष अदालत ने इन याचिकाओं की सुनवाई की भी तो ! सालों सुनवाई चलेगी, तमाम नामी गिरामी वकील अपनी अपनी दलीलें देंगे, खूब बोलेंगे. पीठ भी उन्हें पूरा मौक़ा देगी ताकि किसी को भी शिकायत न रह जाए कि उनका अहम् संतुष्ट नहीं हुआ ! एक प्रकार से एक अंतहीन सी लीगल वेब सीरीज का मजा देती हुई सुनवाई अंजाम पाएगी कि संशोधन विधि सम्मत क़ानून है !       

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Prakash Jain

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