राम तुम्हें अब आना होगा, विघ्नहर्ता तुम्हें ही बनना होगा !

हर साल राम नवमी आती है, परंतु हालिया सालों में राम नवमी थ्रेट के साथ आती है कि हिंसा या अशांति ना हो जाए ! पता नहीं क्यों एक बात घर करा दी गई है कि समुदाय विशेष राम विरोधी है इसलिए विघ्न कर्ता वही होगा ? जबकि इसी समुदाय के शायरों के कलाम सुने तो उनमें राम से जुड़ी अभिव्यक्तियां हिलोरे लेती हैं. 

सर्वप्रथम जिक्र सारे जहाँ से हिन्दोस्ताँ हमारा फेम इकबाल का करें, हालांकि कालांतर में वे राजनीति के प्रभाव में आकर भारत के विभाजन के दोषियों में शुमार हुए, क्या खूब फ़रमाया था उन्होंने,है राम के वजूद पै हिंदोस्तां को नाज़/अहल-ए-नज़र समझते हैं उसको इमाम-ए-हिंद.’ आज का माहौल भी बिगड़ा है तो शत प्रतिशत वजह स्वार्थी और तुच्छ राजनीति ही है. आज के इस मॉब लिंचिंग, हेट स्पीच, कानूनी-गैर कानूनी बुलडोज प्रवृति के दौर में थोड़ा टूर कर लें अयोध्या और उसके आसपास के जिलों का ही जहां के शायरों(जाहिर है मुस्लिम कवियों की बात कर रहा हूँ) का आज भी श्री राम के प्रति वही भावना हैं, प्रभु राम की वही छवि व्यक्त कर रहे हैं ! राम और रसूल में फर्क ना तब किया गया था और ना ही आज किया जा रहा है.  मानो वे निर्लिप्त हैं इस विपरीत माहौल में !  और यही झटका दे रहा है कथित स्वयंभू विघ्न हर्ताओं को कि मंसूबे धरे के धरे रह जाएंगे क्या ?    
अनवर जलालपुरी थे जिन्होंने गीता और गीतांजलि सरीखे महाकाव्यों का उर्दू काव्यानुवाद किया था, जिनका इंतकाल जनवरी 2018 में हुआ था. क्या खूब कहकर इक़बाल की याद दिला दी उन्होंने, "अब नाम नहीं काम का कायल है ज़माना ; अब नाम किसी शख्स का रावण न मिलेगा !" पुराना फैजाबाद उनकी जन्मभूमि थी, ऐसा नहीं है कि उन्हें नफ़रती चिंटू नहीं मिले ; जब भी सामना हुआ, यही कहा, "तुम प्यार की सौगात लिए घर से तो निकलो, रस्ते में तुम्हें कोई भी दुश्मन न मिलेगा !"  
अयोध्या का ही पड़ोसी जिला है जौनपुर जहाँ की मोहतरमा रहबर जौनपुरी गुनगुना उठती है, "आईना-ए-खुलूस-ओ- मोहब्बत यहां थे राम ; अमन और शांति की जमानत यहां थे राम."  मोहतरमा के ही पड़ोसी शायर रिजवान बनारसी ने तो कटु सच्चाई ही बयां कर दी थी जिसे कौन कह पाया आज तक जबकि असंख्य भजन बन गए और खूब गाये भी जा रहे हैं मानो होड़ लगी है, "अच्छों से पता चलता है इंसां को बुरों का, रावन का पता चल न सका राम से पहले !"  हालांकि कुछ ऐसा ही बेमिसाल प्रयास हुआ है रावण के नजरिये से कही गई आशुतोष राणा अभिनीत "हमारे राम" नाट्य प्रस्तुति में ! 

एक समय था जब विश्व हिन्दू परिषद और बीजेपी की हुंकार "सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वही बनाएंगे" गुंजायमान थी.  उस समय भी अयोध्या के ही नामचीन शायर मरहूम शमीम अहमद शमीम ने भाईचारे का ही संदेश देते हुए कहा था, "तुम कहो, कहते अगर राम जन्मभूमि है, भाई, ये पाक जमीं हमने भी तो चूमी है." एक और शायर, नाम याद नहीं आ रहा, कहते नहीं थकते थे कि "जिनको खतरा है करें वे अपने खतरे का हिसाब, राम खतरे में नहीं, इस्लाम खतरे में नहीं."  

अब कौन किसे समझाए, होली आई , रामनवमी आई , ईद आई,  जानों की जान सुबह शाम खतरे में ! अच्छा हो ये त्यौहार आए  ही नहीं ! दरअसल मसला कुर्सियों का है, बात बाबर से राम तक भी पहुंच  गई ; लेकिन संतोष कहाँ ? तो अब औरंगजेब आ गए, शिवाजी आ गए, शंभाजी भी आए ! आज की समस्याओं का अंत हो जाएगा क्या इतिहास पढ़ने पढ़ाने से ? 

बीते दिन देखिये ना होली और रमजान का जुमा एक दिन क्या आ गए, नफरती चिंटुओं की अतिरंजनाओं ने माहौल बिगाड़ने के लिए पूरा माहौल तैयार कर ही लिया था ! वो तो भला हो समझदार हो चुकी अवाम का, बहकावे में नहीं आई ! फिर भी एक तनाव की सी सुरसुरी रह रह कर हो ही रही थी !    
दरअसल शायर कहो या कवि कहो, कहीं के भी रहवासी हो, किसी भी जाति या मजहब का हो, समता में रहते हैं , सर्वधर्म समभाव  के साथ ही होते हैं.  राजस्थान की धरती के लाल हस्ती मल "हस्ती" ने क्या खूब  कहा था, 'दोनों ही एक डाल के पंछी की तरह थे, ये राम वो रसूल अभी कल की बात है.' अभी भी देर नहीं हुई है  लेकिन नहीं चेते हम तो उन्हीं की अन्य दो लाइनें स्मरण हुई जाती है  कि गाँठ अगर पड़ जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी, लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है.  

एक सीरियस बात है पता नहीं क्यों आजकल पत्रकार सीधे ना चलकर या तो दायें चलते हैं या बाएं ! जानबूझकर होली मुबारक कहेंगे, परंतु ईद का राम राम कहने से गुरेज करेंगे ! दरअसल गोदी मीडिया इस संदर्भ में कहा जाना चाहिए कि हर कोई किसी न किसी की गोदी में बैठा है, तदनुसार नेता उनके आका हैं ! वे पत्रकार नहीं, एडवोकेट हैं और केस फॉर या केस अगेंस्ट खड़ा करने के लिए उन्हें पैसे मिलते हैं.  

अनेकता में एकता के सुर अनेकों हैं, किस किस का जिक्र करें ; कभी किसी ने अर्ज़ किया, "अल्ला मियां के हुक्म को है मेरी राम-राम, और राम जी के बान को आदाब अर्ज है" तो  दूसरे कोने से से आवाज आई , "तुझे रब कहे कोई वहगुरो, तू कहीं खुदा कहीं राम है, ये हैं एक नाम की बरकतें हमें नाम लेने से काम है. " और अंत में "मैंने जिसको राम कहा था, वो यीशू था औरों का/ गैर कहो मत उसको यारो गर उसने अल्लाह कहा."     
           

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Prakash Jain

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