क्यों भाई ? जबकि इकोनॉमी तो बूम बूम है ! इसे डिकोड करना है लेकिन पहले जयपुर के रॉक शायर हैं इरफ़ान अली, उनकी कविता पढ़ लीजिए, एक बेरोज़गार हिंदुस्तानी का दर्द, मजबूरी, और वजहें भी खूब उकेरी है उन्होंने -
हाल तो कुछ इस कदर, बदतर हो चला है यूथ का,
टेस्ट बड़ा ही कड़वा है, इस बेरोज़गारी के घूँट का !
गवर्नमेंट जॉब की ख़ातिर, क्या क्या नहीं करते हैं,
सिर पे जितने बाल नहीं हैं, उतने ये फॉर्म भरते हैं।
डिपार्टमेंट कोई भी हो, वैकंसी कम ही निकलती हैं
रिजर्वेशन तो तय है, ये पॉलिसी कभी नहीं बदलती हैं।
फॉर्म भरना भी तो आजकल, एक युद्ध के समान है
मोटी फीस व ऑनलाइन प्रोसेस में अटकती जान है।
मार्केट में हर तरह की, बुक्स व गाइड उपलब्ध हैं
देखकर कोचिंग का क्राउड, कैंडिडेट भी स्तब्ध हैं !
पहले तो रिक्रूटमेंट एग्जाम, टाइम पर होता नहीं है
गलती से हो जाए तो, रिजल्ट उसका आता नहीं है।
नकल करने वाले तो मुन्ना भाई के भी बाप होते हैं
खुद पेपर लीक करवा के फिर घड़ियाली आंसू रोते हैं।
कुछ रसूखदार हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हैं
अटकी रहे भर्ती इसलिए तो महंगा लॉयर करते हैं।
इंटरव्यू के बारे में तो आजकल सबको ही मालूम हैं
जान पहचान कैश और करप्शन की जहाँ पर धूम है।
पैरेंट्स पड़ोसी रिश्तेदार चाहते सब स्योर सिलेक्शन
ज्योंही रिजल्ट आयेगा रखेंगे तुरंत शादी का ऑप्शन।
इतनी आसानी से नहीं मिलती है सरकारी नौकरी
जिस दिन मिल गई तो लगेगा जैसे लगी है लॉटरी।
एक बार मेहनत करके, झाड़ेंगे पूरी ज़िन्दगी रौब
यूथ की तो एक ही होप, बोलो जय गवर्नमेंट जॉब।।
निःसंदेह प्राइवेट सेक्टर का खूब विस्तार हो रहा है, लेकिन कई पढ़े लिखे युवा सरकारी नौकरी चाहत में सालों साल जुटे रहते हैं ; कुछ ही को सफलता मिलती है, बाकियों को अन्यान्य विकल्प ही चुनने पड़ते हैं !
दिल्ली के मुखर्जी नगर चले जाइए, सालों से सरकारी नौकरियों की परीक्षाओं के लिए तैयारी करते युवाओं की फ़ौज मिल जाएगी ! और भी शहर है मसलन प्रयागराज है, जयपुर है, लखनऊ है, पटना है, युवाओं की इस तरह की छोटी मोटी बटालियन मिल जायेंगी ! इन सबों के लिए एक शालीन शब्द है एस्पिरेंट्स ! वही कहलाना पसंद करते हैं सब !
और चाँदी काट रहे हैं कोचिंग इंस्टीट्यूट्स ! एक आकर्षक और सदाबहार बिज़नेस साबित हो रहा है. अब तो बड़े बड़े खिलाड़ी मैदान में हैं ऑनलाइन क्लासेज के नाम पर ! जबकि नौकरी पाने वालों की संख्या मात्र ५ से १० फीसदी है ! फिर भी माँग सदा बनी रहती है ! आश्चर्य है देश में चल रहे इस उद्योग का, जिसे आजकल फैक्ट्री भी निरूपित किया जाने लगा है, कोई डेटा उपलब्ध नहीं है, सभी अनौपचारिक और असंगठित तरीके से जो चल रहे हैं !
गजब का धैर्य है इन एस्पिरेंट्स में , कई मिल जाएँगे 30-32 साल की उम्र हो गई है, शुरुआत की थी आईएएस बनने के ख़्वाब से और अब तो पता भी नहीं है किस किस सरकारी भर्ती के लिए परीक्षा दे दी ! कुल 12-13 कोशिशें हो चुकी है, लेकिन असफलता ही हाथ आई ! किंग ब्रूस एंड स्पाइडर से मिली इंस्पिरेशन भी फेल हुई ; परंतु आस है कि बनी हुई है !
जो रिकॉर्ड उपलब्ध है उसके अनुसार साल 2014 से लेकर 2022 तक 22 करोड़ उम्मीदवारों ने केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन किए. इनमें से चयनित हुए केवल 722000 और इस ऊँट के मुँह में जीरे वाली संख्या में से कईयों ने तो बारंबार कोशिशें की होगी ! 2024 की शुरूआत में उत्तर प्रदेश पुलिस की भर्ती के लिए करीब 50 लाख छात्रों ने आवेदन दिया था, जबकि पद सिर्फ 60,000 थे. इसी तरह केंद्रीय सुरक्षा बल के 26,000 कांस्टेबल के पदों के लिए 47 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया था.
सरकारी नौकरी की चाहत रखने वालों का कहना है कि इसमें सरकार आजीवन सुरक्षा , स्वास्थ्य लाभ, पेंशन और घर देती है, जो उन्हें प्राइवेट सेक्टर नौकरी में नहीं मिल सकता है. परंतु आज तो चीजें काफ़ी बदल गई हैं. कभी इस चाहत को जस्टिफाई करने के लिए ये बातें थीं, लेकिन आज एक कॉर्पोरेट जगत निर्मित हो चुका है, जहां कमोबेश सभी चिंताएं दूर हुई हैं, ऊपरी कमाई वाले एलिमेंट को छोड़ दें तो ! हाँ, असंगठित प्राइवेट सेक्टर अभी भी बहुत बड़ा है, जहां कामकाजियों के लिए चिंताएँ हैं !
सरकारी आंकड़ों की माने तो 2017-18 से हर साल दो करोड़ रोजगार के नये अवसर पैदा हुए है, परंतु सवाल है इनमें से कितनी नियमित वेतन वाली औपचारिक और स्थायी नियुक्ति थीं ? अधिकतर तो स्वरोज़गार किस्म के हैं, अस्थायी कृषि रोजगार हैं !
क्या यही कारण नहीं था कि रोजगार के मौकों को लेकर असंतोष के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी बीजेपी लोकसभा चुनाव 2024 में अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाई और उसे सत्ता में लौटने के लिए सहयोगी दलों का समर्थन लेना पड़ा ? एकमात्र नहीं तो कारणों में से एक मुख्य कारण तो अवश्य ही था ! बात सिर्फ़ इतनी नहीं है कि पर्याप्त नौकरियां नहीं है, बल्कि जो है भी उनमें अच्छा वेतन, जॉब के दौरान सुरक्षा और अन्य लाभ आदि भी समुचित नहीं है ! तभी तो युवा के लिए निजी क्षेत्र में काम करना आखिरी विकल्प है !
यदि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की माने तो सशस्त्र बलों, स्कूलों, हेल्थ सर्विस और सेना समेत सरकार के सभी स्तरों पर लगभग 60 लाख पद खाली पड़े हैं. परंतु सवाल है ये सभी पद, यदि खाली हैं तो, भर भी दिए जाएं, तो क्या समस्या खत्म होगी ? जवाब 'नहीं' ही होगा ! फिर रोज़गार तब क्या बहुत थे जब कांग्रेस सत्ताधारी थी ?
तथ्य तो यही है कि सरकार का काम नौकरी देना नहीं है. सरकार का काम है, ऐसी आर्थिक व्यवस्था को प्रोत्साहित करना, जिसमें औद्योगिक गतिविधियां बढे, उद्योग धंधे लगे, सेवाएं बढ़े, उत्पादन और सेवाओं के लिए कम से कम कानून हो और इन आर्थिक गतिविधियों को करने की वांछित स्वतंत्रता हो. ऐसा करने से निजी सेक्टर में नौकरियां और व्यापार की मौके बढ़ते हैं. जब आर्थिक व्यवस्था मजबूत होती है तो नौकरियां अपने आप ही पैदा हो जाती है. सिर्फ साम्यवादी या वाम सोच के अनुसार ही सरकार एक बहुत बड़ी नौकरी देने वाली संस्था बनती है. परंतु बदलाव तो कट्टर साम्यवादी चीन की नीतियों में इस कदर है कि राष्ट्रपति जिनपिंग चाहते हैं युवाओं को कारोबार शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए यानी रोज़गार से स्वरोज़गार की ओर सोच मुड़ गई है चीन में भी !
सरकार सबको नौकरी दे, यह एक सुनने में अच्छा विचार है. जब क्रियान्वयन होता है, अत्यंत ही लचर सिद्ध होता है. इससे अव्यवस्था और भ्रष्टाचार खूब पनपता है, सरकारी कर्मचारी अपना काम ढंग से नहीं करते हैं और बहुत सख्त नियमों के कारण नागरिकों को बहुत तकलीफ होती है. हाथ कंगन को आरसी क्या, देश के नगर निगमों का हाल देख लीजिए ! राज्यों में बिजली व्यवस्था कैसे सुधरी ? निःसंदेह प्राइवेटाइजेशन से , फिर वह दिल्ली हो, महाराष्ट्र हो या फिर राजस्थान ! एक ज़माना था जब पासपोर्ट हासिल करना हरक्यूलियन टास्क समझा जाता था. जबसे टीसीएस ने इस काम को हाथ में लिया, पासपोर्ट प्रबंधन एक मिसाल है.
देश में आम कहावत है, सरकारी कामकाज है, होते होते ही होता है ! अपनी ड्यूटी को ड्यूटी समझकर निभाने का भाव यदि किसी सरकारी बाबू में है भी तो कहा जाता है बड़ा हरिश्चद्र की औलाद है ! हर किसी ने फील किया है, विशेष तौर पर पुलिस महकमे में, सेल्स टैक्स में , इनकम टैक्स में, कोर्ट कचहरी में और और हर उस जगह जो सरकारी है ! शिकायत कर दी तो भुगत भी लेना, पॉवर इन्हीं के हाथ में जो है ! आप नियम से बंधे है, ये लोग नियम से परे हैं ! कुल मिलाकर आप नियम से हैं , नियम इनसे हैं !
सरकारी दामाद कहलाते हैं सरकारी अधिकारी, बाबू, कर्मचारी ! वेतन लेना है काम कम करना है, नौकरी पक्की है, जा ही नहीं सकती, मर्ज़ी सिर्फ़ इनकी चलती है ! हाँ, अपवाद भी है जैसे सेना है, कुछेक सरकारी विभाग भी हैं !
‘‘अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम, दास मलूका कह गए सब के दाता राम,’’ संत दास मलूक की यह पंक्ति आज के वक्त में बिलकुल ठीक बैठती है. खासकर बात जब सरकारी नौकरी की हो. देश में लाखों लोग सरकारी नौकरी में लगे हुए हैं जिन में कई लाख केंद्र सरकार में नौकरी कर रहे हैं और बाकी लोग विभिन्न राज्यों में. केंद्र और राज्य सरकारें इन कर्मचारियों पर अरबों रुपए हर माह खर्च करती हैं, लेकिन सरकार के खर्च के अनुरूप सरकारी मुलाजिम काम नहीं करते. कटु सच है कि देश की हर सौ नौकरियों में सिर्फ़ दो ही सरकारी है ! ज़रूरत एक ऐसी व्यवस्था की है जिसमें ये दो नौकरियां विशिष्टता खो दें !
दरअसल सरकारी माहौल जब तक काम के माहौल में नहीं बदलेगा, काम के सिलसिले में प्राइवेट और सरकारी का भेद ख़त्म नहीं होगा, वर्किंग क्लास सिर्फ़ और सिर्फ़ वर्किंग है हिंदू मुस्लिम ठाकुर यादव ब्राह्मण ओबीसी आदिवासी शेड्यूल कास्ट नहीं, स्थिति यथावत बनी रहेगी ! यही देश की विडंबना है.
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