पूर्वाग्रह ग्रस्त रचनात्मक स्वतंत्रता का दुष्परिणाम ही है नेटफ्लिक्स सीरीज आईसी 814  !

निःसंदेह IC 814 की हाइजैकिंग एक जघन्य आपराधिक कृत्य था. यदि हाईजैकर्स दुर्दांत अपराधी थे तो इस सीरीज़ के मेकर्स ने भी सच्चाई को बदलकर अपराध ही किया है. वे कितनी भी रिसर्च की दुहाई दें, एजेंडा के तहत अनेकों मनगढ़ंत बातें की गई हैं ! फॉर सीरीज़ आर्ग्युमेंट दिया जा सकता है कि निर्माता ने जानबूझकर तथ्यों को छिपाया या बदला नहीं है, सरकार की नाकामी पर उनका एक नज़रिया है और उसी को पेश करने के लिए रचनात्मक स्वतंत्रता ली है ! परंतु इसे सिरे से ख़ारिज किया जा सकता है क्योंकि विषय आतंकी साये से होकर राष्ट्रीय सुरक्षा का है, अधिकांश लोगों की भावनाओं का है जिस पर ‘अनजाने में हो गईं ’ वाला विक्टिम कार्ड नहीं चलेगा ठीक उसी प्रकार कि आप जानते हैं ट्रैफ़िक रेड लाइट पर रुकना है और यदि क्रॉस कर गये तो ‘जानबूझकर क्रॉस नहीं किया ’ वाला सच भी सजा से बचा नहीं सकता ! 

पाक के साथ "मुल्क" की दुश्मनी शाश्वत है, कल थी, आज है और शायद कल भी रहेगी। भारत में आतंकवाद के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पाक हमेशा लिप्त रहा है. इसी कटु सच्चाई को नकारने का प्रयास परिलक्षित हुआ है इस सीरीज़ में ! 

फिल्मकार की हैसियत से अनुभव सिन्हा बेमिसाल हैं, बेहतरीन है और यह सीरीज़ भी इस बात की तसदीक़ करती है ! और यही थ्रेट भी है व्यूअर्स का सच्चाई से भटक जाने का ! अनुभव ने एक बार फिर अपने अनुभव का बखूबी इस्तेमाल किया है अपने निजी एजेंडा के प्रचार प्रसार के लिए ! सोने पे सुहागा हो गया NETFLIX सरीखे OTT प्लेटफॉर्म की अनुभवी आँखों ने अनुभव को अपनाया या vice versa ! नेटफ्लिक्स का तो मक़सद ही है हद से अधिक हार्ड हिटिंग कंटेंट परोसने का, फिर भले ही रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर तथ्य दबे रहें या मन माफिक संदर्भ डाल दिए जाएँ डबल श्योर होकर पुष्टि किये बगैर ! 
जब वास्तविक घटना को आधार बनाकर फ़िल्म या कंटेंट बनाया जाता है और वह आतंकी घटना सरीखा नाज़ुक मसला हो, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हो, तो क्रिएटिव फ्रीडम में ईमानदारी और अतिरिक्त सतर्कता बरतनी ही होगी. निःसंदेह फेलियर हुई थी, फेलियर बताना दिखाना भी चाहिए ; परंतु अपराधियों को मानवीय बनाना सर्वथा अनुचित है, साथ ही पाकिस्तान और आईएसआई को कपोल कल्पित अलकायदा एंगल के मार्फ़त क्लीन चिट देने का प्रयास तो भारी भूल है, व्यूअर्स को गुमराह करने वाला है. ऐसी भारी भूल अनजाने में हुई है, कैसे माना जा सकता है ? निश्चित ही जानबूझकर एक एजेंडा थोपने की क़वायद है, मेकर्स की कुत्सित मंशा है. 

लिबर्टी लेने का मतलब यह तो नहीं हो सकता ना कि आप एक नहीं अनेकों गलत और कल्पित घटना क्रम डाल दें ! आप आला दर्जे के प्रतिभाशाली है, बेहतरीन सृजनकर्ता हैं , फिल्म विधा के नामचीन धुरंधर हैं, एक फिक्शन में सारा कुछ उड़ेल दीजिये, किसे एतराज होगा ? रियल लाइफ स्टोरी को तो एक्सप्लॉइट मत कीजिए, खासकर उस स्टोरी को जिसके पात्र आज भी जीवित हैं !    

सीरीज़ आद्योपांत देखने के पश्चात् यही प्रतीत होता है कि अनुभव की अनुभवी टीम के किसी भी सदस्य को इस बात का अंदाज़ा नहीं है कि खुफिया एजेंसियां या भारत सरकार कैसे काम करती हैं. यहां तक कि तमाम क्रिटिक, विश्लेषक भी या तो इस बात को नहीं जानते, या फिर. .......! दरअसल हमारा विमर्श, हमारा समाज इतना ध्रुवीकृत हो गया है कि एक रियल इंसिडेंट पर आधारित कंटेंट भी अछूता नहीं रह पाता और फिर जब विवाद होता है, वह भी पूर्वाग्रही होता है. इसी विवाद का फायदा मेकर्स को, प्लेटफॉर्म को मिल भी रहा है.  यही तो वे चाहते हैं, स्क्रिप्ट तैयार ही की थी इसलिए ! 
राइट विंग को शो इसलिए अखर रहा है कि स्क्रिप्ट में अपहरणकर्ताओं के हिंदू नाम वाले कोड नेम भोला और शंकर को स्पष्ट कर बताने की ज़हमत नहीं उठाई गई है कि वे मुस्लिम थे. माना हूबहू यही कोड नेम आतंकियों ने यूज़ किये थे, परंतु जिस प्रकार एक सीन में हाईजैकर्स अपने लिए इन नामों का इस्तेमाल करते हैं, उसी प्रकार कुछ सेकंडों का एक दूसरा असली नामों का इस्तेमाल करते हुए सीन क्यों नहीं क्रिएट किया गया ? मेकर्स ने ऐसा करने की तथाकथित रचनात्मक स्वतंत्रता क्यों नहीं ली?  कथित वे लोग, जिन्हें लेफ्ट विंग कहें या लिबरल कहें, सीरीज़ को यथार्थ और प्रामाणिक बता रहे हैं ! वे गलत हैं, मूर्ख भी है ! सीरीज़ के दो पहलू हैं - एक तो प्लेन के अंदर जो कुछ हुआ, उसका दिग्दर्शन और दूसरा ग्राउंड पर या कहें तो बैक ऑफिस में ( भारत सरकार भी और हाईजैकर्स के आका भी ) ! 
बात 1999 में हाईजैक हुए प्लेन के अंदर की करें तो पायलट के संस्मरण पर आधारित है, हालांकि और भी पक्ष हैं मसलन यात्रियों की यादें ! गलतियां अनेकों हैं, द टेलीग्राफ से बात करते हुए IC 814 के रियल लाइफ पायलट ने बताया, 'मैंने खुद प्लंबिंग लाइन नहीं रिपेयर की थी. उन्होंने (तालिबान अथॉरिटी ने) एक वर्कर को भेजा था. मैं उसे अपने साथ लेकर नीचे एयरक्राफ्ट होल्ड में लेकर उतरा था क्योंकि उसे नहीं पता था कि लाइन्स कहां हैं.'  एक और सीन है जिसमें हाईजैक खत्म होने के बाद बाहर निकल रहे पायलट को विदेश मंत्री बने सीनियर एक्टर पंकज कपूर सैल्यूट करते हैं. शरण ने बताया कि रियल लाइफ में ऐसा सीन भी नहीं हुआ था. उन्होंने कहा, '(विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने) मुझे सैल्यूट नहीं किया था. उन्होंने एक जेस्चर जरूर किया था, जो हमारे एफर्ट्स की सराहना जैसा था, असल सैल्यूट की बजाय.'  
इसी प्रकार विमान के केबिन क्रू चीफ अनिल शर्मा ने, जिनकी इस घटना पर लिखी किताब 'IA's Terror Trail'  को भी मेकर्स ने शो के लिए के लिए इंस्पिरेशन बताया है, नेटफ्लिक्स के शो में आधा दर्जन से अधिक गलतियों का होना बताया है. जर्नलिस्ट बरखा दत्त के साथ एक बातचीत में अनिल शर्मा ने नेटफ्लिक्स के शो 'IC 814' को लेकर अपनी आपत्तियां बताईं. उन्हें ये शो 'निराशाजनक' और 'मजाकिया' लगा और उन्होंने कहा कि शो देखने के बाद इस पूरी घटना को भुगतने वाले लोगों को गुस्सा आ रहा है और ये जायज भी है. प्लेन के अंदर हाईजैकर्स ने भय का वातावरण निर्मित कर दिया था, उन्हें कैसे मानवीय दिखाया जा सकता है ? शो में आतंकवादियों को 'वाइटवॉश' किया गया है, आतंकवाद और आतंकवादियों को बहुत हल्के में दिखाया गया है. यदि शो में कप्तान देवी शरण शरण देव हो सकते हैं, साउथ इंडियन को पायलट का नाम बिल्कुल भिन्न हो सकता है, फ्लाइट इंजीनियर का नाम बदला जा सकता है , एयर होस्टेस का नाम बदला जा सकता है, तो हाईजैकर्स के कोड नेम का जिक्र क्या सिर्फ इसलिए किया गया है कि वे हिंदू धर्म के देवताओं के नाम है ? क्रिएटिव लिबर्टी क्या पायलट, क्रू मेंबर्स और अन्यों के नामों (मसलन रॉ के , आईबी के , विदेश मंत्री के ) को बदलने भर के लिए है ? हाईजैकर्स के कोड नामों को भी तो बदला जा सकता था या फिर उनके असल नामों से ही संबोधित किया जा सकता था !  यही कृत्य मेकर्स की मंशा पर गंभीर सवाल खड़ा करता  है ! 

जहां तक ग्राउंड की बात है, क्या क्या घटा, उसकी डिटेलिंग ; गलत है, बचकानी और मूर्खतापूर्ण है. और यदि कहें कि पूरी सीरीज ही आईएसआई का PR जॉब है, गलत नहीं है ! घनघोर आपत्ति है कि सिर्फ दो दशक पहले घटी एक महत्वपूर्ण घटना के बारे में युवा होती पीढ़ी से झूठ बोला जा रहा है जिसे शायद पता नहीं है वास्तव में क्या हुआ था ! और कोई आश्चर्य नहीं कि, यदि आज इसे एक्सपोज़ नहीं किया गया तो, कालांतर में ये झूठा शो ही recognised version के रूप में अडॉप्ट हो जाए !    

सर्वविदित तथ्य है हाईजैकर्स पाकिस्तानी थे और हाईजैक के कुछ दिनों बाद, भारतीय खुफिया एजेंसियों ने उन्हें पाकिस्तानी गुर्गों के रूप में पहचाना और यहां तक कि उन्हें यह भी पता था कि वो पाकिस्तान के किस हिस्से से आए थे. शो ये नहीं बताता. इसके बजाय, सीरीज़ में अपहर्ताओं को अफगानिस्तान और यहां तक कि अलकायदा से जोड़ने की अस्पष्ट और अविश्वसनीय कोशिश की गई है, जिससे पता चलता है कि हाईजैक ओसामा बिन लादेन द्वारा रची गई किसी बड़ी योजना का हिस्सा था और अगर आईएसआई इसमें शामिल थी, तो वह महज पपेट थी. यह सरासर झूठ है.हाईजैक आईएसआई का ऑपरेशन था, जो दशकों से पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ छेड़े गए गुप्त युद्ध का हिस्सा था.
झूठ और भी हैं, रॉ को साजिश के बारे में पहले से ही खुफिया जानकारी थी और एक भारतीय एजेंट ने विमान को उड़ान भरने से रोकने की भी कोशिश की थी. यह एक झूठ है.इसके बाद रॉ को साजिश के बारे में जानकारी निकालने के लिए नेपाली नागरिकों को प्रताड़ित करते हुए दिखाया गया है. यह सब मनगढ़ंत है. यह ‘रचनात्मक स्वतंत्रता’ नहीं है. और यदि फिक्शन ही बनाना था तो पूरे शो में रियल घटना क्रमों के स्टिल क्यों अडॉप्ट किये? 
इस घटना ने एक देश के तौर पर हमें घुटनों पर बिठा दिया था और इस बात पर बहस की जा सकती है कि सरकार नाकाम रही या कुछ कर नहीं सकी. लेकिन इसे यूं दिखाना कि भारत सरकार के तमाम अक्षम मूर्ख अधिकारी थे, अत्याचारी भी थे, कैसे ठीक है ? आदर्श रचनात्मकता तो वह होती जो यूँ दिखाती कि घटना आज के लिए सबक बनती. हालांकि सच तो यही है कि इस एक नाकामी से राष्ट्र ने खूब सबक लिया. फिर शो में निगोशिएट करने गई इंडियन टीम (जिसमें आज के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी शामिल थे जो तब आईबी में थे ) को जिस तरह दिखाया गया है, रियल में वे लोग उससे कहीं ज्यादा गंभीर थे. 
मेकर्स क्लेम करते हैं कि शो के लिए गहन शोध किया है, सरासर झूठ है. तो सवाल बड़ा है ! असलियत से डेविएशन क्यों किया गया ? हाईजैक की साजिश जिहादी विचारक मसूद अजहर के भाई ने रची थी, ताकि वो अपने भाई को भारतीय जेल से छुड़ा सके. रॉ और भारतीय सरकार ने हाईजैक के दूसरे ही दिन इस बात का पता लगा लिया था. ‘आईसी 814’ पर सवार यात्रियों के बदले में मसूद के साथ रिहा किए गए अन्य आतंकवादी भी पाकिस्तानी थे. उमर शेख, जो पाकिस्तान लौट आया था, जहां वो डेनियल पर्ल के अपहरण और हत्या में शामिल था और मुश्ताक ज़रगर (‘लटरम’) जिसका इस्तेमाल आईएसआई ने कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए किया था.रिहा किए गए तीनों आतंकवादियों को तालिबान ने पाकिस्तान जाने में मदद की, जहां सभी का गर्मजोशी से स्वागत किया गया. मसूद अज़हर ने अपने सम्मान में आयोजित एक सार्वजनिक समारोह में भी भाग लिया. तो भारतीय टीवी सीरीज़ इन सब बातों को क्यों कम करके दिखाएगी? यह आईएसआई को बचाने के लिए अलकायदा से जुड़े एक असंभावित संबंध पर क्यों ध्यान केंद्रित करेगा? यह इतने सारे झूठ क्यों बोलेगा? क्या अनुभव अनुभवहीन हैं कि उन्हें कुछ पता नहीं था? कैसे मान लिया उन्होंने कि वास्तव में यही हुआ था ? आईएसआई के प्रति सहानुभूति क्यों ? क्या आईएसआई के प्रति सॉफ्ट कार्नर रखने वाले ब्रिटिश पत्रकार एड्रियन लेवी, जिसने कहानी को कंट्रीब्यूट किया है, का एजेंडा चल गया ? 
एक बात तो स्पष्ट है सीरीज में शामिल किसी भी व्यक्ति ने इसमें चित्रित किए गए किसी भी महत्वपूर्ण व्यक्ति से बात नहीं की. उन्होंने विमान के अंदर सेट किए गए दृश्यों के लिए पायलट के बयान पर भरोसा किया और बाकी सब बना दिया. इस घटना के चश्मदीद अनेकों मसलन अधिकारी ( तब के रॉ चीफ    दुलत,अजीत डोभाल, अनिल अरनी), क्रू मेंबर्स, पायलट, यात्री भी जिन्दा हैं, उनसे सलाह नहीं ली गई. वे तमाम लोग सीरीज़ की विकृतियों और अशुद्धियों से हैरान हैं, दुखी हैं. बेशक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जिम्मेदार प्रतिष्ठानों की फेलियर थी, सबसे बड़ी फेलियर आईसी 814 को अमृतसर से उड़ान भरने देना था और साथ ही तक़रीबन 45 मिनटों तक अमृतसर अड्डे पर प्लेन रहा और कुछ नहीं किया जा सकना था. सीरीज़ इस फेलियर को टच भर कर निकल जाती है और फर्जी कहानियों के सहारे इंडियन एजेंसियों का मखौल उड़ाते हुए ना केवल आतंकवादियों का महिमा मंडन करती प्रतीत होती है बल्कि उनके आका आईएसआई को भी क्लीन चिट दे देती है. सवाल है दोषी कौन ? नेटफ्लिक्स या फिर नेटफ्लिक्स के लिए सीरीज के निर्माता अनुभव सिन्हा ! एकबारगी मान भी लें, जैसा अनुभव के लिए लिबरल बैटिंग कर रहे हैं, उन्होंने नासमझी में, अनजाने ही यह मान लिया कि वास्तव में यही हुआ था, वे बरी नहीं किये जा सकते ! कम से कम इंडियन व्यूअर्स के दोषी तो वे हैं ही !       
काश ! आईसी 814 महज़ एक फिक्शन भर होती, हम भी इसे अनुभव की बेमिसाल कृति बताते, पूरी टीम के क़सीदे पढ़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते, बंदे ने क्या लाजवाब कंटेंट जो क्रिएट किया है ! अफ़सोस ! ऐसा नहीं है ! मक़सद नेक जो नहीं है ! हार्ड हिटिंग और एंगेजिंग शो बनाना भर मक़सद होता तो अनुभव में कूवत है एक और फौदा टाइप शो बनाने की ; उन्हें रियल लाइफ महत्वपूर्ण घटना को एक्सप्लॉइट करने की ज़रूरत नहीं थी ! फिर एक कहानी सुनाने और उसे विश्वसनीय बताने के लिए केवल अपने अनुकूल तथ्यों को चुनना रचनात्मक और बौद्धिक बेईमानी है. यह इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करना, किसी को बेवजह बदनाम करना और किसी का महिमामंडन करना है.

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Prakash Jain

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