क्या महिलाओं पर हो रहे अपराधों को अनदेखा अनसुना कर 'अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी' को ही नियति मान लें ?

गोविंद का जन्मोत्सव खूब धूमधाम से मनाया गया ! वही गोविंद, जिसने महिलाओं की संवेदनाओं और भावनाओं को गहराई से समझा था ! गोविंद कहो या कृष्ण कहो या कान्हा, वही था जिसने नरकासुर के चंगुल से 16000 महिलाओं का उद्धार कर उनके सम्मान की रक्षा की थी ! द्रौपदी के तारण हार थे वे, बुआ कुंती के कठिन समय में उनके साथ खड़े थे ! कुल मिलाकर श्रीकृष्ण महिलाओं की गरिमा के लिए उनकी रक्षा में हमेशा तत्पर थे - एक सखा, प्रेमी और रिश्तेदार के रूप में ! वह तो सुरक्षा, करुणा, कोमलता और प्रेम के देवता हैं, परंतु इस कलियुग में मानो वे रुष्ट हैं !

आदर्श स्थिति तो वह होती जिसमें महिलाओं के दुख दर्द के तारण हार के रूप में पोलिटिकल क्लास अग्रणी होती और उनमें से अनेकों कृष्णावतार अवतरित होते ! परंतु ऐसा तभी संभव होता यदि सभी पार्टियाँ महिलाओं के उत्पीड़कों से परहेज़ रखती ! 16 मौजूदा सांसद और 135 मौजूदा विधायक ऐसे हैं जिनके ख़िलाफ़ महिला उत्पीड़न के मामले दर्ज हैं और कई कई ऐसे हैं जिनका मन वचन कर्म कभी न कभी महिलाओं के प्रति उनकी कुत्सित सोच दर्शा ही जाता है ! पार्टियों के लिहाज़ से देखें तो मानो सब कह रही हैं “हम किसी से कम नहीं !”

पिछले दिनों कोलकाता के आर जी कार हॉस्पिटल में ट्रेनी महिला डॉक्टर से बलात्कार और जघन्य हत्या का मामला सामने आया जिसने लोगों को झकझोर कर रख दिया ! मामला थमा भी नहीं था कि महाराष्ट्र के बदलापुर के एक स्कूल में दो नाबालिगों के यौन शोषण और अकोला में स्कूली छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की खबरें आ गई ! आम जनता ने सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन भी किया, लोगों ने दोषियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया और दोषियों के लिए फांसी की मांग की ! हॉस्पिटल हो या स्कूल या फिर कोई और कार्यस्थल ही क्यों ना हों, इन घटनाओं के घटने में वहां के मैनेजमेंट की लापरवाहियां और महिला सुरक्षा के लिए निर्धारित नियम कायदों की अवहेलना को नकारा नहीं जा सकता ! परंतु पोलिटिकल क्लास का, जो रुख़ देखने को मिला, वितृष्णा ही होती है नेताओं से ! दलगत और स्वार्थ परक राजनीति महिलाओं के उत्पीड़न और यौन शोषण की घटनाओं पर भी हावी हो जाती है. घटनायें बिना नागा रोज घट रही हैं, चूंकि देश भर में तक़रीबन नब्बे घटनायें प्रतिदिन घट रही हैं. एक दिन ही गुजरा होगा बदलापुर मामले को कि तमिलनाडु के कोयम्बुत्तूर में नौ स्कूली छात्रों के यौन शोषण का खुलासा हुआ. बोले तो कोई प्रदेश बाकी नहीं रहता जहां कहीं न कहीं उत्पीड़न की घटना न घटती हो !
फिर जिस कदर पॉलिटिक्स होती है, अपराधियों, हैवानों को जाति के आधार पर, राजनीतिक संवंधीकरण की वजह से कमतर बताया जाने लगता है; कोफ़्त होती है. आज उस तारण हार के जन्मदिन पर मन बहुत खिन्न है ...... कैसे कहें और कासे कहें , ओ पालन हारे, निर्गुण और न्यारे ........ तुम्हरे बिन हमरा कौनो नहीं .........हमरी उलझन सुलझाओ भगवन ? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री द्वारा अपनी सत्ता को बचाने के लिए एक महिला होते हुए भी क्रूर बलात्कारी(बलात्कारियों) और हत्यारों को बचाने की कोशिश ने "नारीत्व" को शर्मसार ही किया है. और फिर दलगत राजनीति की वजह से अन्य महिला नेताओं का चुनिंदा होकर मुखर होना भी सामान्य नागरिक की आत्मा को व्यथित करता है. सर्वोत्तम सांसद अवार्ड प्राप्त सुप्रिया सूले भी बंगाल की वीभत्स घटना का सामान्यीकरण कर देती है, क्योंकि टीएमसी सहयोगी जो है ! नारी का नारी के प्रति ऐसी उपेक्षा एवं भाव शून्यता पर "सख्त एतराज" है. यदि पचास फीसदी जनता (सिर्फ महिला भर ही) एक सुर में पैन इंडिया सड़कों पर उतर आएं, तो बलात्कारियों के हौसले पस्त हो सकते हैं ! इन्हीं हालातों ने जन्माष्टमी के दिन तक़रीबन चार साल कहीं पढ़ी पुष्यमित्र उपाध्याय की कविता स्मरण करा दी, चूंकि राह दिखाते हुए महिलाओं को प्रेरित भी करती है कि 'खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से पूछे बता तेरी रजा क्या है ?' श्रीकृष्ण ने नीतियों का निर्धारण किया जिनका विस्तृत विवरण ही तो है "श्रीमद्भगवद्गीता" ! ज़रूरत उन्हें अपना कर, बगैर किसी का मोहताज हुए स्वयं अपनी सुरक्षा की पहल करनी होगी ! "हिम्मत ए मर्दा तो मदद ए खुदा" सिर्फ आदमियों के लिए नहीं, महिलाओं के लिए भी सार्थक है ! मातृशक्ति अच्छी तरह समझ लें कि भगवान तभी साथ हैं जब आप स्वयं के साथ हैं ; समग्र रूप से मातृशक्ति, चाहे कुछ भी हो, किसी भी जाति, धर्म, संगठन के लिए निष्ठ हों, अपनी सुरक्षा के लिए, सिर्फ और सिर्फ यह समझते हुए कि वे सब सिर्फ और सिर्फ नारी जाति हैं, संगठित रहें !

सुनो द्रौपदी .....शस्त्र उठा लो अब गोविंद ना आएंगे... .

छोड़ो मेहंदी खड़ग सँभालो, खुद ही अपना चीर बचा लो

धूत बिछाए बैठे शकुनि, मस्तक सब बिक जाएंगे

कब तक आस लगाओगी तुम, बिके हुए अखबारों से,

कैसी रक्षा मांग रही हो दुःशासन दरबारों से

स्वयं जो लज्जाहीन पड़े हैं, वे क्या लाज बचाएंगे ?

सुनो द्रौपदी ! शस्त्र उठा लो अब गोविंद ना आएंगे !

कल तक केवल अंधा राजा, अब गूंगा बहरा भी है ;

होंठ सिल दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है !

तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे, किसको क्या समझायेंगे ?

सुनो द्रौपदी ! शस्त्र उठा लो अब गोविंद ना आएंगे !

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Prakash Jain

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