ड्रेस कोड के नाम पर हिजाब कैसे बैन कर सकते हैं ?

कर्नाटक का हिजाब विवाद यूनिफार्म के सख्ती से लागू किये जाने से उपजा था ! यूनिफार्म भी एक प्रकार का ड्रेस कोड है लेकिन हर ड्रेस कोड यूनिफार्म नहीं होता ! कहने का मतलब कर्नाटक के मामले में समानता के लिहाज से यूनिफार्म की बाध्यता हावी हुई फैसले पर, हालांकि शीर्ष न्यायालय की बड़ी बेंच का फैसला अभी आना बाकी है. उच्च न्यायालय ने धार्मिक लिहाज से हिजाब की अनिवार्यता और साथ ही हिजाब को महिलाओं का मौलिक अधिकार बताये जाने को भी खारिज कर दिया था.  

पिछले दिनों ही मुंबई के एक कॉलेज ने कैंपस में हिजाब, बुर्का और टोपी पहनने पर रोक लगाई थी. कुछ छात्राओं ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन उनकी याचिका खारिज हो गई. अब सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेज के सर्कुलर पर फिलहाल आंशिक रोक लगा दी है. फिलहाल बोले तो अंतरिम आदेश है, अंतिम फैसला नहीं ! आंशिक बोले तो न्यायमूर्ति द्वय ने कॉलेज की दलीलों में से एक से सहमति जताते हुए कहा कि चूंकि चेहरा ढंकने वाले नकाब या बुर्का बातचीत के दौरान बाधा पैदा करते हैं, कक्षा में चेहरा ढंकने वाले नकाब की अनुमति नहीं दी जा सकती. साथ ही कैंपस में धार्मिक गतिविधियां भी नहीं की जा सकती हैं.  

दरअसल ड्रेस कोड के नाम पर कुछ के पहनावे पर रोक लगाने की कॉलेज की मंशा ही विद्वेषपूर्ण थी, एजेंडिक थी क्योंकि कॉलेज में हिजाब या बुरका पहन लड़कियाँ सालों से आती रही हैं. सो क्यों न कहें कि कॉलेज प्रशासन को तो हिजाब अपनी ड्रेस कोड पालिसी में शामिल कर लेना चाहिए था ! परंतु कॉलेज ने कुतर्क ही किया कि नियम इसलिए लागू किया गया, जिससे स्टूडेंट्स का धर्म उजागर ना हो. आज़ादी के इतने सालों बाद अचानक धर्म की बात ही क्यों ? सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस खन्ना ने कहा, "ऐसा नियम लागू मत कीजिए. क्या उनके नामों से उनके धर्म के बारे में पता नहीं चलता? उन्हें साथ मिलकर पढ़ने दीजिए." कोर्ट का यह भी कहना था कि धर्म का पता नाम से भी चलता है, तो फिर क्या उन्हें नाम की बजाय नंबर से पुकारा जाएगा? वहीं, जस्टिस संजय कुमार ने सवाल उठाया कि क्या यह लड़की पर निर्भर नहीं करता कि वह क्या पहनना चाहती है.  

सही ही तो है, अच्छा नहीं है हर कुछ मजहब से, धर्म से जोड़ना, किसको है कैसे जीना अपना हिसाब है ! हर मुस्लिम लड़की हिजाब नहीं पहनती, ठीक वैसे ही जैसे हर हिंदू लड़की बिंदी नहीं लगाती ! परंतु सवाल शीर्ष न्यायालय से है, अंतरिम आदेश क्यों ? क्यों नहीं फैसला किया ?  यूनिफार्म (वर्दी ) की महत्ता को स्वीकारते हुए ऐसा क्या है जो हर किसी को गरिमापूर्ण और सौम्य पहनावे की आज़ादी नहीं देता ? जहाँ बतौर ड्रेस कोड यूनिफार्म लागू है मसलन स्कूल, कुछ कॉलेज, आर्मी, नर्स, पुलिस,वहां हरगिज़ दीगर पहनावे की अनुमति नहीं दी जा सकती बशर्ते धार्मिक अनिवार्यता न हो मसलन सिखों के लिए 5 मर्यादाओं के पालन की अनिवार्यता, शादीशुदा हिंदू महिला के लिए सिंदूर की अनिवार्यता, हिंदू लड़कियों के लिए बिंदी की अनिवार्यता. अन्यथा कहीं कोई कुछ भी पहने, आपत्ति क्यों ? ड्रेस कोड सेलेक्टिव क्यों हो ? हाँ, फ्रीडम का मतलब यह नहीं है कि कोई लड़का कॉलेज/कार्यस्थल में शॉर्ट में या लड़की बिकनी में चली आये ! इस लिहाज से ड्रेस कोड रेग्यूलेट हो, क्यों किसी को आपत्ति होगी ? 

#DresscodeHijab

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Prakash Jain

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