कुछ ख़बर है भी नहीं ए बेखबर !

दिन भर खाली हूँ सो अखबार ऐसा मिल जाए कि दिन बर्बाद हो जाए. .......तो बात बन जाए ! फिर मैं तो तीन चार दिनों के अखबार लेकर बैठ जाता हूँ, सरसरी निगाहों से पन्नों को पलटते पलटते कुछ खबरों पर नजर टिक जाती है क्योंकि "woah I feel good" या फिर चौंकने की सी फील जो आ जाती है. और वही कुछ कतरनें शेयर कर लेते हैं.       

वैसे तो आज मीडिया के, प्रिंट हो या फिर डिजिटल, अधिकतर पत्रकारों के पास सोचने का वक्त ही नहीं है कि सच परोस रहे हैं या झूठ ! वजह है मीडिया अब मीडिया नहीं कंटेंट बन गया है, जिसका एंटरटेनिंग होना जरूरी है टीआरपी के लिए ! "सबसे तेज" और "सबसे पहले" की अंधी दौड़ में मीडिया टीम के पास सोचने का समय ही नहीं है कि सच को व्यक्त करने में ज्यादा समय लगता है या झूठ को ! खबर तो उनके लिए महज "आईडिया" के मानिंद है जिसे उनको अपने तरीके से, अपने एजेंडा के मुताबिक़ विस्तार देना है ! जैसी खबर है वैसी न तो दिखाती  है और न ही बताती है, सनसनीखेज हेड लाइन होंगी, जिनका सच से वास्ता ही नहीं है ; और इसके तहत घटना/वाकया/कथन को आइडिया के रूप में ग्रहण किया जाता है और फिर क्रिएटिविटी को एक्सप्लॉइट करते हुए स्टोरी नैरेट कर दी जाती है.  सवाल यदि उठा भी तो रचनात्मक स्वतंत्रता की आड़ येनकेनप्रकारेण मिल ही जाती है.  

खैर जो भी हो, कतरनें जो है यहां, बगैर किसी लाग लपेट के, ठीक वही हैं जो हैं ! हालांकि यथोचित "मन की बात" इसमें भी है, इतनी लिबर्टी तो ली ही जा सकती है बिना तथ्यों को तोड़े मोड़े !

#SayNoToLeave/Holiday/VacationWithPay 

सुप्रीम न्यायालय की जज साहिबा हैं बीवी नागरत्ना ! उन्हें न्यायालय के अवकाश के कारण मुकदमों की सुनवाई किए बिना वेतन मिलने पर अपराध बोध होता है ! ऐसा उन्होंने एमपी के सिविल जजों की , जिनकी बर्खास्तगी उच्च न्यायालय ने रद्द कर दी थी, बर्खास्तगी काल के वेतन की मांग ठुकराते हुए कहा.  जस्टिस नागरत्ना का स्पष्ट मत है कि सिविल जजों ने बर्खास्तगी के दौरान कौन सा काम किया था, जो उन्हें वेतन दिया जाना चाहिए ? निसंदेह माननीया महिला जज क्रांतिकारी हैं, अक्सर उनके फैसले क्रांतिकारी इस मायने में होते हैं कि जब वह किसी न्यायिक पीठ में शामिल होती है, साथी जजों से उनका मतभेद अक्सर उभरता है जिसके वश वह साथियों से सहमति न रखते हुए विपरीत फैसला ही देती रही है. इसी मुद्दे पर देखिए ना जजों के बड़े वर्ग के साथ देश के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ यह कहकर अवकाश के पक्ष में हैं कि जज छुट्टी के दिनों में भी कोर्ट का ही काम करते हैं.  
गौरतलब है कि उच्चतम और उच्च न्यायालयों में  शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन अवकाश सार्वजनिक क्षेत्र में बहस का मुद्दा बने रहते है, इन अदालतों में बड़ी संख्या में मुकदमों के लंबित रहने के कारण अवकाश के औचित्य पर सवाल उठाया जाता है कि अन्य सरकारी कार्यालयों की तरह इनमें भी अवकाश नहीं होना चाहिए ! सो ऑन ए लाइटर नोट, महिला न्यायाधीश का वश चलें तो न तो 'लीव विथ पे' होगी न ही हॉलिडे विथ पे या वेकेशन विथ पे होगी कहीं भी ! 

#BeteKoPadhaoBetiKoBachao 

क्या खूब और सटीक कहा है बॉम्बे उच्च न्यायालय ने ? संयोग ही है कि यह भी महिला जस्टिस रेवती मोहिते ने ही कहा है - "बेटे को पढ़ाओ, बेटी को बचाओ!"  बच्चियों और स्कूल गोइंग लड़कियों की बढ़ती यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर ऐसा कहा गया ! जस्टिस रेवती के साथ साथ जस्टिस चव्हाण ने भी कहा कि लड़कों को छोटी उम्र से ही महिलाओं - लड़कियों के सम्मान की शिक्षा देनी चाहिए. आज सही मायने में लड़कों की शिक्षा महत्वपूर्ण है,  "बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ"  की महत्ता तभी है जब 'बेटे को पढ़ाओ, बेटी को बचाओ' भी अपनाया जाएगा ! बात खूब होती है लड़कियों को बताने की कि क्या बैड टच है, क्या गुड टच है ? जिनसे टच मिलता है, उन्हें भी तो समझाना ज़रूरी है ताकि बैड टच हो ही नहीं ! 

#ToothpasteVsDantManjan ; #BabaExposed  

अब बात करें व्यापारी बाबा रामदेव के तथाकथित वेज स्टेटस वाले नॉनवेज दिव्य दंत मंजन की ! किसी की भावनायें इस कदर आहत हो गईं कि उसने न्यायालय की शरण ली ! उसने दावा किया है कि  "दिव्य दंत मंजन" में मछली का अर्क शामिल है, जबकि इसे शाकाहारी उत्पाद के रूप में बेचा जा रहा है. इस संबंध में दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार, FSSAI और पतंजलि को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. याचिकाकर्ता के अनुसार, इस उत्पाद की पैकेजिंग पर हरा डॉट लगाया गया है, जो इसे शाकाहारी दिखाता है, लेकिन इसमें मांसाहारी तत्व शामिल हैं.                   
100g के दिव्य दन्त मंजन के इंग्रेडिएंट्स में समुद्र फेन 4.40g है जो कि कटलफिश है. कटलफिश समुद्रों में बहुतायत में हैं. जब इनकी मृत्यु होती है तो इनकी अस्थि बिना सड़े गले खराब हुए समुद्रों में तैरते रहते हैं. तटों पर भी बड़ी मात्रा में बिखरते हैं. समुद्र फेन नामकरण संभवतः इसलिये ही पड़ा है.  समुद्र फेन जीवित अवस्था का कटल फिश का भाग नहीं है बल्कि उसके मृत्यु के उपरान्त का प्रोडक्ट है. इसमें चूंकि 85 फीसदी कैल्शियम कार्बोनेट और सिलिका आदि मिनरल होते हैं, दंत मंजन में इसकी उपयोगिता है. 
दंत कांति में समुद्र फेन का अल्पांश अनुचित तो नहीं है क्योंकि यह कई आयुर्वेदिक उत्पादों और दंत मंजनों  के फार्मूले का एक संघटक है. हाँ, दंत कांति के रैपर पर Sepia officinalis उद्धृत है यानि जीव का नाम लिखा है जबकि उस पर कटल फिश बोन होना चाहिए था. यह भूल अवश्य है जो कानूनी दांव पेंच में इस पतंजलि प्रोडक्ट के विरुद्ध जा सकता है.  फिर कटलफिश बोन शाकाहारी श्रेणी में आयेगा या फिर मांसाहारी यह भी विवाद का बिन्दु है.  एक और बात, बाबा रामदेव स्वयं अपने इस प्रोडक्ट का प्रचार करते हैं, जिसमें वे कोलगेट को जी भरकर कोसते है ; परंतु ख़ुद के प्रोडक्ट दिव्य दंत मंजन में कटलफिश की बात नहीं करते जबकि वैधानिक नोटिस तो उन्हें मई 2023 में मिल चुका था ! पब्लिक डोमेन में उन्हें स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए थी ! इसलिए याचिकाकर्ता मांसाहारी उत्पाद के अनजाने में सेवन से होने वाली गहरी परेशानी के निवारण की मांग करता है, धार्मिक विश्वासों को बनाए रखने और उत्पाद प्रतिनिधित्व में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के महत्व पर जोर देता है. 

कतरनों का सिलसिला जारी रहेगा आगे भी, तो लाइक बनता है ना ! 

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Prakash Jain

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