सुना मोदी हट जाए तो नेताजी मरने को भी तैयार है या यूँ कहें कि वे मोदी को हटाकर ही मरेंगे ! भाई इतनी नफरत और घृणा मोहब्बत की दुकान से बंट रही है क्या ? सो वयोवृद्ध नेता जी तब तक जियेंगे जब तक मोदी काबिज़ है, तो सबों को कामना करनी चाहिए कि मोदी बने रहें ; आख़िरकार मोदी है तो उनकी जिंदगानी है ! #LongModiRuleForLongLife क्या सभी नेताओं के लिए उपयुक्त है ?
खैर ! बात हुई लाइटर नोट पर ! थोड़ा सीरियस हो चलें ! आजकल देशों को लेकर, शख्सियतों को लेकर खूब डेटा एनालिसिस होते हैं, देश में भी विदेशों में भी ! देसी एजेंसियों को भाव मिलता नहीं, कहावत जो है घर की मुर्गी दाल बराबर ! ये तो मज़ाक़ हुआ, सवाल उनकी निष्पक्षता पर उठते हैं वजह लेफ्ट या राइट हो सकती है. फिर हमारे यहाँ तो परंपरा रही है स्वयं को विदेशियों से तुच्छ समझने की ! कल तक विदेश यात्रा इतनी महत्वपूर्ण थी कि ज्योतिषियों का मुख्य शगल था जजमान को विदेश यात्रा का योग बताने का ! जो प्रवासी भारतीय है वो सुपीरियर है और यदि एनआरआई है तो सोने पे सुहागा हुआ कि एक्स्ट्रा सुपीरियर है ! यही वजह है कि हमारे नेता, यदि वे प्रतिपक्ष हैं, फॉरेन एनालिसिस कंपनियों के निष्कर्षों को ही शिरोधार्य करते हैं !
पिछले दिनों दो विदेशी एजेंसियों ने दो अलग अलग माणकों पर विभिन्न देशों की पोजीशन बताईं जिनका सीधा ताल्लुक देशों के सत्तासीन सिरमौर से हैं ! हालांकि भारत में इन दो रिपोर्टों में से एक सत्ता को मदमस्त कर देती है, जबकि दूसरी, चूंकि यथार्थ है, सत्ता की खुमारी उतारने की दिशा में हैं.
अमेरिकी डेटा एनालिसिस कंपनी "मॉर्निंग कंसल्ट" ने दुनिया के 25 सबसे बड़े नेताओं की अपने अपने देश में लोकप्रियता का आकलन कर बताया है कि नरेंद्र मोदी सबसे लोकप्रिय नेता है. सर्वेक्षण के मुताबिक़ 25 में से सर्फ चार देशों के नेता ऐसे हैं जहां आधी से ज्यादा जनता उन्हें पसंद करती है. इस सूची में भारत के पीएम मोदी टॉप पर हैं, 72 फीसदी जनता उन्हें पसंद करती है. क्या यही सच्चाई है ? प्रतिपक्ष को तो इस एजेंसी का आकलन सरासर गलत लग रहा है, या कहें तो उन्हें रास नहीं आ रहा है. इसलिए प्रतिपक्ष ने इस पर चुप्पी साध ली, जबकि सत्ता पक्ष बल्ले बल्ले करने लगा !
दूसरी ओर एक और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूशन "रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स" ने मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं की लिस्ट जारी की है. इस लिस्ट में चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के पीएम जैसे नेताओं के साथ पीएम नरेंद्र मोदी का भी नाम है. एजेंसी इन तमाम नेताओं को "प्रेडेटर्स ऑफ़ प्रेस फ्रीडम" निरूपित करती है. संस्था ने इस बात पर मोहर लगा दी है कि पीएम मोदी भी एक ऐसी सेंसर व्यवस्था बनाने के जिम्मेदार है, जिसके तहत या तो पत्रकारों को जेल में डाल दिया जाता है या उनके खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया जाता है. रिपोर्ट जहाँ "बहुत ख़राब" और "खराब" में देशों को वर्गीकृत करती है, वहां स्पष्ट करती है कि मोदी का नाम पहली बार लिस्ट में आया है जिनकी मोडसऑपरेंडी डिफरेंट इस मायने में है कि वे मीडिया पर हमले के लिए मीडिया घरानों को दोस्त बनाकर मुख्यधारा की मीडिया को अपने प्रचार से भर देते हैं और जब कोई पत्रकार सवाल पूछने की जुर्रत करता है, राजद्रोह और अन्यान्य कानूनों का मकड़ जाल है ही उसे फंसाने के लिए ! बस ! यही प्रतिपक्ष ने लपका और सत्तापक्ष ने इसे राष्ट्र के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार बता दिया ! परंतु तभी जो हुआ, उसने इस रिपोर्ट पर मोहर लगा दी !
पिछले दिनों ही ऑस्ट्रेलियाई फिल्म निर्माता डेविड ब्रैडबरी को, जिन्हें वीजा भी प्रदान किया जा चुका था और जो अपने दो किशोर बच्चों के साथ आये थे, चेन्नई हवाई अड्डे से वापस भेज दिए जाने की घटना ने भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी और सरकारी एजेंसियों द्वारा उनकी शक्ति के दुरुपयोग की तसदीक़ कर ही दी है. हालांकि डेविड के बच्चों को प्रवेश दिया गया ! सवाल है डेविड ब्रैडबरी, जो कि एक जाने माने फिल्म निर्माता हैं, जिन्होंने कई विषयों पर फिल्में बनाई हैं, जिनमें से दो के लिए उन्हें ऑस्कर पुरस्कारों के लिए मनोनीत भी किया जा चुका है, को क्यों डिपोर्ट किया गया ? उन्होंने परमाणु ऊर्जा पर अपनी एक डाक्यूमेंट्री के लिए 2012 में तमिलनाडु के कुडनकुलम में परमाणु ऊर्जा प्लांट के निर्माण के खिलाफ इडिनतकरई में चल रहे प्रदर्शनों को अपने कैमरे में कैद किया था. 73 साल के ब्रैडबरी के मुताबिक़ इडिनतकरई, जहां प्रमुख भूकंप फॉल्ट लाइन है और जहाँ 2004 में सुनामी 1000 लोगों को बहा ले गई थी, में एक नहीं छह परमाणु प्लांट बनाना पागलपन था. चूंकि इसी वजह से लोकल लोग आंदोलित थे, जिसे डेविड ने कवर किया था, वे सत्ता की आँखों की किरकिरी बन गए थे. आश्चर्य तो इस बात का है कि आज की मोदी सरकार को भी वे नहीं सुहाए ! क्या यही लोकतंत्र है, जिसमें वंचित लोगों तक पहुंचने और उनकी कहानी में उनका पक्ष सामने रखने के मीडिया के अधिकार को कमतर किया जाए ? कहीं मोदी सरकार को ब्रैडबरी का भारत का यात्रा कार्यक्रम नागवार तो नहीं गुजरा ! जबकि उनका बनारस जाने का मकसद सिर्फ इतना ही था कि वे मय बच्चों के हिंदू धर्म में किसी की मृत्यु की मान्यताओं को समझ सकें. कुछ महीनों पहले ही उनकी पार्टनर और बेटे की मां की मृत्यु हुई थी.
ऑस्ट्रेलियाई रचनाकार के साथ जो भी हुआ, स्पष्ट हुआ मोदी की लोकप्रियता, कल जो भी रही हो, आज तो निश्चित ही कम से कमतर हो रही है !
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