क्या होली पर "होली मुबारक" उवाच कर विश करने वाले ईद पर ईद का राम राम बोलने की ज़ुर्रत करेंगे ?

सवाल मुस्लिम भाइयों से नहीं है या उन हिंदुओं से भी नहीं है जिनका मुस्लिमों संग उठना बैठना है. उनका होली मुबारक करना स्वाभाविक प्राकट्य है. 

सवाल जानबूझकर ऐसा बोलने वालों से है, चूंकि कुत्सित मंशा है उनकी ! ये लोग धकियाये हुए हैं अपनी अपनी जमात से, जिसके कभी नामचीन थे वे ! जब तक आका सत्तासीन थे, इनके जलवे थे, अब हाशिये पर पड़े हैं. पाला तब न बदलते जब एंट्री दी जाती ! चाणक्य इन लोगों की नस नस से वाकिफ जो है कि ये तो बिच्छू हैं, स्वभाव बदल ही नहीं सकते ! 
चूंकि ये उस्ताद लोग हैं, नैरेटिव गढ़ने में सानी नहीं रखते ! कहने का मतलब बाय डिफ़ॉल्ट ज्वलंत है. हर बात में, हर घटना में, हर विचारधारा में नुक्ता चुगना उन्हें आता है और वे भलीभाँति जानते हैं कि अलग दिखने में ही उनकी पूछ है, आखिर हर डिबेट में, डिजिटल हो या नॉन डिजिटल, अगेंस्ट वॉइस चाहिए ही ना ! 
क्रिटिक होना अच्छा है, परंतु खूबियों को भी नकार देना कुछ वैसा ही है जैसा नास्तिक करते हैं ! इनकी इस मानसिकता का इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं रहा होगा ! हालांकि जनमानस भी अब समझ गया है कि इन लोगों की फितरत ही सरकास्टिक है जबकि हर बात सार्केज्म नहीं होती ! हालांकि सार्केज्म में इन महानुभावों को एस्केप रूट जो मिल जाता है कि मैंने ऐसा तो नहीं कहा था !      

समझ ही गए होंगे मैं किनकी बात कर रहा हूँ ? या फिर नहीं समझे ? किसी ने कहा,  "क्यों मजाक कर रहे हैं, एक दो के तो नाम तो लीजिए ?"  ताज़ातरीन दो महाशयों ने जो ट्वीट किया, उन्हीं का पोस्टमार्टम कर लेते हैं, उनके नामों का खुलासा करते हुए ! 

एक महानुभाव हैं आशुतोष कुमार ! उन्होंने ट्वीट किया, "होली मुबारक" ! तो मैंने रियल टाइम में पूछा कि क्या वे ईद(आने ही वाली है) पर "ईद का राम राम" ट्वीट करेंगे ? आशुतोष तो शाश्वत "सत्य" है, ऐसा वे स्वयं क्लेम करते हैं ! जबकि वे माहिर हैं तथ्य को संदर्भ से निकाल कर अपने एजेंडा में सेट करने की जुगत में ! हालांकि अक्सर नहले पे दहला पड़ ही जाता है और वे एक्सपोज़ कर दिए जाते हैं !  उन्होंने  "होली मुबारक" जानबूझकर ट्वीट किया और ऐसा करके  होली के सद्भाव पर ग्रहण ही लगाया है. 

एक और है बुजुर्ग विनोद शर्मा, तक़रीबन चार दशकों का अनुभव है पत्रकारिता के क्षेत्र में ; हिंदुस्तान टाइम्स से संबद्ध रहे ! जगजाहिर है उनकी कांग्रेस के प्रति भक्ति ! होली के पावन अवसर पर उन्होंने सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की, हरिवंश राय 'बच्चन' की, केदारनाथ की या फिर फणीश्वरनाथ 'रेणु' की रचना पोस्ट नहीं की, ना ही फॉर दैट मैटर किसी सूफी संत मसलन अमीर खुसरो या बाबा बुल्ले शाह की रचना पोस्ट की, बल्कि जानबूझकर "मियां" शब्द से शुरू होती एक नज़्म पोस्ट की ! पोस्ट की सो की साथ ही इन खूबसूरत लाइनों की अपने मित्र की भी बता दिया !     
माननीय विनोद जी ने क्यों ऐसा किया - क्या चाहते हैं वे ? सद्भाव बढ़ाने चाहते थे या फिर सद्भाव को डेंट करना चाहते थे ! खैर ! जो हुआ सो हुआ ! असल जो हुआ कि इक्का दुक्का को छोड़कर त्यौहार के माहौल में कोई अप्रिय घटना नहीं घटी ! कहीं कुछ दिशा निर्देशों पर नाक भौं ज़रूर सिकोड़ी गई कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ ! ठीक बात है, हुआ तो हुआ बतौर एहतियात ही हुआ चूंकि जहां हुआ वहां के हालिया विगत माहौल के मद्देनज़र ही हुआ ! सही है, कुछ पोलिटिकल बयानबाजियां हुई, लेकिन वे कब नहीं होती ? दलगत बातें होती रहती हैं, हर पार्टी के चुनिंदा नुमाइंदे ही करते हैं, स्टैण्डर्ड यही होता है कि पार्टी उनके बयानों को व्यक्तिगत बता कर किनारा कर लेती है. विरोधी उनको तूल देते हैं, वही पॉलिटिक्स जो है. अच्छी बात है कि आज जनता जनार्दन इन दांव पेंचों को बखूबी ताड़ लेती है और अप्रभावित और निर्लिप्त रहती है ! पार्टियों के प्रवक्ता लोग टीवी प्राइम टाइम पर, ट्विटर पर, यूट्यूब पर और अन्य प्लेटफॉर्मों पर उछल कूद मचाते रहते हैं, लोग अब इसे बतौर मनोरंजन ही लेते हैं.                                                              

एक और बात, खुलासा कर दूँ, नज़्म शर्मा जी के मित्र की है ही नहीं ? नज़्म तो १८ वीं शताब्दी के उर्दू शायर नज़ीर अक़बराबादी की है जिनके काल में शर्मा जी पैदा भी नहीं हुए थे ! उनकी नज्में धर्मनिरपेक्ष हुआ करती थी, आज भी सार्थकता है उनकी ; लेकिन तब नहीं जब विनोद शर्मा जी ने यूँ अपने सार्केज्म के लिए एक्सप्लॉइट की ! 

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Prakash Jain

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