हम जैन हैं तो हिंदू नहीं है - न्यायालय ने कह दिया है !
9 Mar, 2025
समझ नहीं आता न्यायमूर्ति को हो क्या गया है ? जैन हतप्रभ है, सालासर बाबा (हनुमान) को हर साल सवा मनी चढ़ाई, हर दिवाली लक्ष्मी गणेश का पूजन करता रहा, पूर्ण हिंदू रीति और मान्यताओं के मुताबिक विवाह में सात फेरे लिए, हर मंदिर गए, चारों धाम दर्शन किए, हर माता के दर्शन किए, कुल देवी तो दुर्गा स्वरूप ओसिया माता को ही पूजा, गृह प्रवेश किया तो हवन किया, स्वर्गवासी माता पिता की तेरहवीं की, करवा चौथ और ना जाने क्या क्या व्रत रखे , सावन के हर सोमवार शिव जी को जल चढ़ाया, भागवत सुनी, अनगिनत सुंदरकांड पाठ किए और तो और इस बार महाकुंभ में भी डुबकी लगा आए ! फल क्या मिला ? न्यायमूर्ति ने डिक्लेयर कर दिया हम हिंदू नहीं है !
भारत सरकार पूरे देश में सभी धर्मावलंबियों के लिए एक समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लागू करने की तैयारी कर रही है. वहीं मध्य प्रदेश में जिला फैमिली कोर्ट इंदौर ने एक जैन दंपत्ति की तलाक की अर्जी पर जैन शास्त्रों का हवाला देते हुए एक आदेश पारित किया है, जिसके अनुसार हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत जैन नहीं आते हैं. इंदौर में जैन युगल ने जिला फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दी. प्रथम अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश धीरेंद्र सिंह ने यह कहते हुए अर्जी को खारिज कर दिया कि जैन धर्म, हिंदू धर्म की मूल मान्यताओं के विपरीत है. जैन धर्म वैदिक मान्यताओं का विरोध करता है. इस कारण से हिंदू मैरिज एक्ट के तहत न्यायालय में सुनवाई का अधिकार उन्हें नहीं है. न्यायाधीश महोदय ने 10 वीं शताब्दी के जैन आचार्य श्री वर्धमान सूरी द्वारा रचित नीति ग्रंथ आचार दिनकर का उल्लेख करते हुए लिखा कि इस ग्रंथ में जैनों के लिए विवाह विधि का उल्लेख किया गया है व हिंदू विवाह विधि से अलग जैनों का अलग पर्सनल लॉ है. जज ने अपने आदेश में हिंदू धर्म की मूलभूत वैदिक मान्यताओं को जैन द्वारा अस्वीकार करने वाला बताया. जज ने अपने फैसले में लिखा, जनवरी 2014 से जैन अल्पसंख्यक समुदाय के अंतर्गत आता है, जैन धर्म के लोगों को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं रह गया है.जैनों का अपना पर्सनल लॉ है.
इसके बाद जैन कपल के मेल काउंटर पार्ट सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 17 फरवरी को इस पर रोक लगा दी. अदालत ने कहा है कि जब तक इस मामले में अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक परिवार न्यायालय सिर्फ धर्म के आधार पर याचिकाएं खारिज नहीं कर सकता. इस मामले में जैन धर्म को हिंदू धर्म से अलग मानने और हिंदू विवाह कानून के तहत राहत देने पर सवाल उठ रहे हैं।
दरअसल माननीय न्यायालय का निर्णय बेमानी है, जरूरत भी नहीं थी ! लिबरल जैन तो इसे कदापि जायज नहीं ठहराएगा ! कब उसने जैन ग्रंथ पढ़े ? हनुमान आरती, लक्ष्मी आरती उसे कंठस्थ है, बहुत हद तक सुंदरकांड भी ! श्री भगवत गीता भी पढ़ी है उसने ! जैन के नाम पर फॉर्मेलिटी ही निभती है कि नवकार मंत्र साथ साथ पढ़ लेता है या फिर मिच्छामी दुक्कड़म कह दिया ! जैनियों से ज़्यादा तो जैन ग्रंथों को विद्वान देवदत्त पटनायक ने पढ़ा है !
हाँ, कट्टर जैनियों की बात जुदा है, हालांकि उनकी कट्टरता भी दोयम है ! और फिर है ही कितने ये कट्टर ? यही कट्टर जैनी न्यायमूर्ति को साधुवाद दे रहे हैं कि न्यायाधीश ने जैन समाज के धार्मिक ग्रंथो के शाश्वत सत्य पर अदालत की मोहर लगा दी है. यह सत्य भी बता दिया है, जैन धर्म को मानने वालों क़ी हिंदू धर्म पर आस्था नहीं हो सकती है. दोनों धर्म की आस्थाएं अलग-अलग हैं. पर्सनल लॉ से अभिप्राय विभिन्न धर्मों की सामाजिक व्यवस्था जिसमें विवाह, तलाक,संपत्ति, उत्तराधिकार और विरासत आदि के संबंध में बने हुए नियमों से होता है. इंदौर की फैमिली कोर्ट के इस फैसले ने जैन पर्सनल लॉ और जैन ग्रंथो को चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया है, जिसके बारे में भारतीयों ओर अधिकतम जैन लोगों को भी जानकारी नहीं हैं.
विद्वान् जज ने आदेश में पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक भारत एक खोज का हवाला देते हुए लिखा, जैन निश्चित रूप से हिंदू या वैदिक धर्म का हिस्सा नहीं हैं. कोई भी जैन, आस्था से हिंदू नहीं है. आदेश में लिखा है, जैनों को अपनी धार्मिक एवं सामाजिक परंपराओं को पालन करने का संवैधानिक अधिकार है. जैन धर्म के लोगों को हिंदू पर्सनल लॉ का कोई अधिकार नहीं है. यदि ऐसा किया जाता है, तो जैनों की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन होगा. न्यायमूर्ति ने क्या खूब निष्कर्ष निकाल दिया कि जैन धर्म का कोई भी अनुयायी अपने धर्म की हजारों वर्ष पुरानी सुस्थापित सामाजिक एवं धार्मिक परंपरा के रहते हुए वैवाहिक विवाद के निराकरण के लिए सेक्शन 7 के तहत कुटुंब न्यायालय के समक्ष प्रतिवाद प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र है.
दरअसल न्यायालय ने स्वयंभू जैन महागुरु ओं, आचार्यों को अपनी विद्वत्ता झाड़ने का मौक़ा दे दिया है. जैन धर्म के प्राचीन शास्त्रों के हवाले से पर्सनल लॉ की व्याख्या करेंगे, सामाजिक रीति रिवाजों, संस्कारों और उनसे संबंधित नियमों की वकालत करेंगे, ये भी बताएँगे कि जैन ग्रंथों के अनुसार बुआ और मामा के बच्चों का भी आपस में विवाह हो सकता है ! स्त्री के संपत्ति एवं अन्य अधिकारों को लेकर 1000 साल पहले भी जैन धर्म कितना प्रगतिशील था, स्कोर करने के लिए ज़रूर बताएँगे !
सच तो यही है कि जैन समाज के लोगों का सामाजिक विवादों का निपटारा प्रचलित शासन के कानून के अनुसार होता रहा है. 1955-56 में भारत सरकार ने जैन लॉ को हिंदू कोड बिल में विलीन कर दिया था और सामाजिक मामलों में जैन समाज निर्विवाद हिंदू बिल कोड को मानता आ रहा है. जैन समाज के अधिकतम अनुयायी एक तरफ जैन धर्म का पालन करते हैं, तो दूसरी ओर हिंदू धर्म का भी पालन करते हैं. इसी प्रकार हिंदू समाज के कई सारे लोग एक ओर हिंदू धर्म पालन करते हैं तो दूसरी ओर जैन धर्म का भी पालन करते हैं. इतिहास साक्षी है जैन समाज के कई सारे महान आचार्य, साधु, साध्वियां, मुनिगण, आध्यात्मिक महापुरुष आदि का जन्म जैन घरों में नहीं बल्कि हिंदू घरों में हुआ था. आज भी जैन धर्म के कई आचार्य, साधु-साध्वियां आदि जन्म से जैन नहीं हैं, बल्कि उनका जन्म हिंदू घरों में हुआ है. इसकी एक बड़ी लंबी सूची बनायी जा सकती है. भारत की कई जातियां ऐसी हैं जिनमें जैन और हिंदू इन दोनों धर्मों के अनुयायी बडी संख्या में पाये जाते हैं, और उनमें विवाह संबंध भी होते रहते हैं. जैसे जाट, पटेल, अग्रवाल, खत्री, बंट, श्रीमाली ब्राह्मण, वक्कलिग गौडा, कासार, मातंग, लोहाना आदि. दादा भगवान सम्प्रदाय में त्रिकूट मंदिर होता है. इसमें मुख्य मंदिर सीमंधर स्वामी का होता है, बाकी दो मंदिर भगवान शिवजी और भगवान श्रीकृष्ण के है. यूरोप और अमेरिका में कई हिन्दू-जैन मंदिर हैं, जहाँ हिन्दू और जैन इन दोनों धर्मों से संबंधित मूर्तियां होती है.
संविधान में, कानून में, जनगणना में हिंदू एक धर्म माना गया है. समाज भी ऐसा ही मानता है. यह ठीक ही है. लेकिन हिंदू यह किसी एक धर्म का नाम नहीं है, बल्कि कई अलग अलग धर्म और सम्प्रदायों के एकत्रित समूह का नाम है. हिंदू धर्म के अंतर्गत शैव, वैष्णव, शाक्त, स्मार्त आदि प्रमुख संप्रदाय और दर्शन आते है. इन सबकी मुख्य देवतायें अलग अलग है. जैसे कि शैवों की मुख्य देवता शिव है, जब कि वैष्णवों की मुख्य देवता विष्णु है. भारत के किसी भी प्राचीन धार्मिक या अन्य साहित्य में हिंदू शब्द का प्रयोग धर्म के अर्थ में नहीं गया किया है. वास्तव में हिंदू शब्द एक प्रदेश वाचक शब्द है. इस शब्द का संबंध सिंधु और सिंधु घाटी की सभ्यता से है. अरबी और फारसी भाषा में हिंदू शब्द का अर्थ प्रदेश वाचक ही है. हिंदू शब्द का सीधा-साधा अर्थ ‘भारतवासी’ या ‘हिंदुस्थानी’ ही है! मतलब साफ है, हर भारतवासी हिंदू ही है, लेकिन केवल तब, जब हिंदू इस शब्द का प्रयोग धर्म के अर्थ में नहीं किया जाता ! चूंकि हिंदू शब्द का अर्थ प्रदेश वाचक है तो जैन हिंदू ही है. हाँ, अगर हिंदू का मतलब धर्म है, तो जैन हिंदू नहीं है ! क्यों कि जैन ना तो शैव है, और ना ही वैष्णव, और ना ही वह हिंदू धर्म के अंतर्गत आने वाले किसी भी संप्रदाय के अनुयायी.
इंदौर तलाक मामले से एक बार फिर हिंदू और जैन का मामला सुर्खियों में आया है. इंदौर के न्यायाधीश ने जो फैसला सुनाया है, उसकी अवधारणा अल्पसंख्यक समुदाय में जैन समाज के शामिल होने को माना जा सकता है. परंतु यह आदेश तब सही माना जा सकता था जब दोनों पक्षों में से किसी भी एक पक्ष ने जैन पर्सनल लॉ (गिनती के ही होंगे जो इसकी बात करते हैं ) से विवाद निपटारे की मांग की होती. तथ्य तो यही है कि जैन समाज धार्मिक मामलों में जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करता है जबकि सामाजिक रूप से जैन समुदाय के लोग भारतीय संविधान और हिंदू कोड बिल के कानूनों का पालन करते हुए आए हैं .
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