
वाकई मराठी सिनेमा की समझ को दाद देना बनता है जिसकी छोटी सी दुनिया में कोई फ़िल्मकार लगभग साल भर पहले वह परिकल्पित कर चुका होता है, जो सुदूर अमेरिका में कहीं साल भर बाद सच होता है।
वो परिकल्पना क्या थी, एक पल रहस्य रखते हुए आएं टाइटल "गोदाकाठ" पर ! शाब्दिक अर्थ है नदी का किनारा जिसे उसके प्रवाह ने किसी न किसी बाधा से हटकर बनाया है अंततः समुद्र में मिलने की अपनी नियति को प्राप्त करने के लिए ! जल के प्रवाह की यही यूएसबी है जिसे लचीलापन कहें या फ्लेक्सिबिलिटी कहें या शायद अधिक उचित होगा डक्टिलिटी (Ductility) कहना !

"गोदाकाठ" सरीखी ही नायिका प्रीति (मृण्मयी गोडबोले) के जीवन की यात्रा है। एक मल्टीनेशनल कंपनी में पावर , पद और पैसे के नशे में डूबी हुई प्रीति संवेदनहीन है, उसके लिए पैसा और सफलता ही सबकुछ है। उसकी संवेदनहीनता की वजह गलत परवरिश है जो पिता ने उसको दी। आश्चर्य नहीं कि सफलता के चरम पर पहुँचने के लिए कुछ भी मायने नहीं रखता, न संबंध , न संवेदना , न ही नैतिकता ! सफलता मिलती चली गई तो सुख के लिए ड्रग्स और सेक्स जरूरत बन गए।कहने को परफेक्ट लाइफ है जिसमें संवेदनाएं सुप्तावस्था में हैं ! कमोबेश यही तो "द फेम गेम" का चक्रव्यूह है ! कंपनी में अपनी पोजीशन मजबूत करने के लिए वह एक मेल से हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकाल देती है। टर्निंग पॉइंट आता है उसकी जिन्दगी में जब वह अपने कर्मचारियों और उनके परिवार द्वारा आत्महत्या किये जाने की ख़बरें सुनती है। संवेदनाएं जागृत हो उठती है और बेचैन प्रीति अपनी सारी सफलता पीछे छोड़ गुमनाम अंतहीन यात्रा पर निकल जाती है और वह भी खाली हाथ !

शहर शहर भटकते उसे एक गांव में मिलते हैं पशुओं की सेवा सुश्रुषा में लीन लोकल बुजुर्ग वैद्य सदानंद(किशोर कदम)। वे उसे सहारा देते हैं। उनके साथ प्रकृति के मध्य समय गुजारते हुए उसे जीवन की संवेदना का , मनुष्यता का , नैतिकता का , ईमानदारी का एहसास होता है। वह अपने जीवन में वापस लौटती है इस संकल्प के साथ कि कभी अपने बच्चे को कमोडिटी के मानिंद बड़ा नहीं करेगी।

इस फिल्म के बनने के तक़रीबन एक साल बाद हूबहू हजारों एम्प्लाइज को नौकरी से निकालने की घटना को अंजाम दिया था यूएस की एक डिजिटल मॉर्टगेज कंपनी बेटरडॉटकॉम के भारतीय मूल के सीईओ विशाल गर्ग ने। मात्र ३ मिनट के ज़ूम कॉल से ९०० कर्मचारियों को एक साथ नौकरी से निकाल दिया था। गर्ग ने कहा कि मार्किट , परफॉरमेंस और प्रोडक्टिविटी में ख़राब परफॉरमेंस के कारण कर्नचारियों की छुट्टी की गयी है।
वास्तव में एक नौकरी , नौकरी भर नहीं होती , उसके साथ कई लोगों की उम्मीदें , उनका वर्तमान ,उनका भविष्य जुड़ा होता है। किसी के बच्चों की पढाई , किसी के किसी फॅमिली मेंबर का इलाज , किसी के मकान की ईएमआई जैसे जरुरी काम एक व्यक्ति की जिद को भेंट चढ़ जाते हैं।
जब सोशल मीडिया पर किरकिरी होने लगी और दवाब बढ़ा तो विशाल ने निकाले जाने को नहीं , निकाले जाने के तरीके को गलत मानते हुए माफ़ी मांग ली थी। गर्ग के अंदर यदि मानवीय संवेदना शेष रही होती तो क्या होता, यही तो गजेंद्र अहिरे की दिसंबर २०२१ में रिलीज़ हुई मराठी फिल्म "गोदाकाठ" दिखाती है।
तो रहस्य ख़त्म हुआ ना ! हालांकि इस रहस्य का फिल्म के कथानक से दूर दूर का वास्ता नहीं है, वास्ता है तो वो है टर्निंग पॉइंट परिकल्पित घटना का कालांतर में हकीकत में घट जाना। क्या ही अच्छा हो यदि इस फिल्म को हर मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट के छात्र देखें ! विडंबना ही है इस तरह की सही मायने में मास्टरपीस फिल्म सिर्फ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल की शोभा बनकर रह जाती है !
एक्टिंग की बात करें तो मृण्मयी(प्रीति) एक दशक से मराठी फिल्मों में सक्रिय है और उसकी अभिनय क्षमता की झलक देखने को मिली थी मैक्स प्लेयर पर स्ट्रीम हुई वेब सीरीज "हाई" में जिसमें उसने जॉर्नलिस्ट आशिमा चौहान का किरदार निभाया था। किशोर कदम (सदानंद) किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। बहुचर्चित फिल्म सेक्शन ३७५ का जस्टिस और अक्षय कुमार स्टार्रर स्पेशल २६ में अक्षय का साथी इकबाल ही किशोर कदम है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं किशोर और मराठी फिल्मों में वे तीन दशकों से सक्रिय हैं। लेखक निर्देशक गजेंद्र के नाम तक़रीबन ५७ मराठी फ़िल्में हैं, अनेकों अवॉर्ड उन्हें मिल चुके हैं, राष्ट्रीय भी और अंतराष्ट्रीय भी । गजब के क्रिएटर हैं, वर्सटाइल भी हैं।

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