NETFLIX की ताजातरीन हिंदी वेब सीरीज़ “ब्लैक वारंट” वाक़ई वार्रन्टेड है !
13 Jan, 2025
सलीब पर चढाने का फरमान है ब्लैक वारंट ; मृत्यु की तस्दीक है ब्लैक वारंट ! हालांकि उस खल (दुष्ट, अधम) को मृत्यु दंड भी उपयुक्त नहीं है, जबकि मृत्यु से बढ़कर जग में कोई प्रचंड दंड भी तो नहीं है. परंतु यह भी सत्य है कि No black warrant can kill anyone anywhere so long as life is there.
वेब सीरीज़ के इस टाइटल के पीछे लॉजिक की बात करें तो यह बेस्ड है तिहाड़ जेल के पूर्व अधीक्षक, प्रेस स्पोकसपर्सन और लीगल एडवाइजर रहे सुनील गुप्ता की बहुचर्चित नॉन फिक्शन बुक "ब्लैक वॉरंट : कनफ़ेशंस ऑफ़ ए तिहाड़ जेलर" पर, जिसमें उनकी सहयोगी रही हिंदुस्तान टाइम्स से करियर की शुरुआत करने वाली पत्रकार एवं एंकर सुनित्रा चौधरी ! परंतु सवाल है बुक का यही नाम क्यों ? तिहाड़ जेल में फाँसी की सुबह के वर्णन के माध्यम से जेल जीवन की छोटी बड़ी बातों की तुलना लेखक ने मृत्यु दंड के नैतिक आघात से की है. शायद किसी मोड़ पर देर सबेर उन्हें एहसास हुआ कि एक स्वस्थ, सचेत व्यक्ति को नष्ट करने का क्या औचित्य है ?
नेटफ्लिक्स की दाद इस बात के लिए देनी पड़ेगी कि व्यूअर्स की नब्ज खूब पकड़ता है, इसीलिए तो "ब्लैक वारंट" पर नामचीन निर्देशक विक्रमादित्य मोटवानी के बनाये कंटेंट को स्ट्रीम करने का बीड़ा उठाया ! एक प्रकार से रिस्क ही लिया, परंतु इसे ही तो कॅल्क्युलेटेड रिस्क कहते हैं. मसलन मन मसोस कर ही रह जायेगी एक ख़ास पॉलिटिकल क्लास, परंतु इसे प्रोपेगंडा कहने की जुर्रत नहीं कर पाएगी ! वर्ना तो मोटवानी की ही 2023 में बनी डॉक्यूमेंट्री "इंदिरा' इमरजेंसी" सरीखा हश्र ही होता, जिससे नेटफ्लिक्स ने ही पल्ला झाड़ लिया था बावजूद हरी झंडी देने के !
यह पुस्तक कई खुलासे करती है. सुनील गुप्ता ने तो स्वयं एक प्रकार से डबल उम्र कैद काटी है, तिहाड़ में तीन दशक से ज्यादा समय जो बिताया था. खुलासे कई हैं मसलन एशिया की सबसे बड़ी जेल के भीतर जीवन कैसा है कैदियों का और जेल के मुलाजिमों का भी ! क्या होता है जब किसी को फाँसी दे दी जाती है ? जेल के भीतर के व्यक्ति ( सुनील गुप्ता) ने अनेकानेक सनसनीखेज वाक़यों को वहां देखा और अनुभव किया. स्वयं भी शिकार हुआ, द्वंद्व से जूझता रहा; बेहद ख़राब फैसलों का शिकार हुए गुमनाम कैदियों से लेकर कुख्यात कैदियों के, दोषियों के और फंसाये गए लोगों के भी जीवन को देखा और समझा. जेलर से लेकर अन्य मुलाजिमों को अपनी नौकरी की असंख्य जटिलताओं , चुनौतियों और संघर्षों से जूझते देखा उन्होंने. इन्हीं सबों को बखूबी कलमबद्ध किया है सुनील गुप्ता ने और साथ मिला बहुमुखी प्रतिभाशाली पत्रकार सुनित्रा का ! सुनील गुप्ता की प्रशंसा के लिए किरन बेदी ने भी ट्वीट किया है - “BIG BREAK for my former Collegue #Sunil Gupta. He has had the courage to reveal what he experienced BEFORE we started to REFORM Tihar Prisons. He was my Deputy Superintendent and one of best in TEAM TIHAR. @jayadevsarangi Watch the Series #BlackWarrant on #NETFLIX and read the book He is also a Trustee of @IVFoundation"
कंटेंट इंटरेस्टिंग तभी होगा जब एंगेजिंग होगा और ऐसा तभी संभव होता है जब मेकर अपनी क्रिएटिविटी का वांछित इनपुट डाल पाता है ! निःसंदेह मेकर्स ऐसा कर पायें हैं, वरना तो अभी तक जेल ब्रेक की या गलत तरीके से कैद करने की नाटकीय कहानियां ही कही जाती रही है ! कहने का मतलब रचनात्मकता किंचित भी ओवर नहीं हुई है !
सीजन अपेक्षाकृत लंबे सात एपिसोडों में भी नहीं सिमट पाया है, हिंट भी मिल जाता है कि दूसरा सीजन चार्ल्स शोमराज के जेल से भागने की सनसनीखेज घटना से शुरू होगा. इस हिसाब से देखा जाए तो सीजन अस्सी के दशक के तिहाड़ की पूरी कहानी भी कवर नहीं कर पाई है. तक़रीबन 35 सालों तक तिहाड़ में अपने कार्यकाल के दौरान सुनील कुमार गुप्ता ने 14 फांसियां देखी थी, जबकि सीरीज में रंगा-बिल्ला और मकबूल भट की फांसी भर है.
बगैर एपिसोडों की कैफ़ियत दिए, ताकि रोचकता बनी रहे सीरीज की, इतना भर बता दें कि देश की आपराधिक न्याय प्रणाली के अभिन्न अंग जेल के रहस्यों का आश्चर्यजनक खुलासा झकझोर सा देता है. जेल के नारकीय जीवन की ख़ुद की हैरतअंगेज पॉलिटिक्स का दिग्दर्शन तो है ही, साथ ही देश की राजनीति का प्रभाव भी स्याह माहौल को कंट्रीब्यूट करता दिखता है !
हालांकि मेकर्स इस बार खूब सचेत है कि शो की कहानी को प्रभावित करने वाले उस समय के राजनीतिक तनाव के पल सहज भाव से तिहाड़ तक पहुँच जाए और कोई तांडव ना हो ! निःसंदेह वे सफल भी हुए हैं. एक सिख गृह मंत्री का औचक जेल दौरा, उनका इंटरनेशनल अपराधी चार्ल्स से अकेले मिलना, उनके सम्मुख एक नशे में धुत कैदी का कहना कि “ये चाचा नेहरू की जेल है, यहाँ सब कुछ मिलता है” ….. एक शिक्षित युवा विचाराधीन कैदी की फाँसी की सजा पाये मकबूल भट्ट के बारे में कथन कि उसे फाँसी नहीं होगी, सरकार इसे कश्मीरियों से नेगोशिएशन के लिए बचा कर रखेगी….. जेलर का कहना कि “प्रोटेस्ट स्टूडेंट लीडर के सस्पेंड होने पर, वीसी के खिलाफ तो नारे लगे पीएम के खिलाफ भी - कोई बताए इंडिया इज इंदिरा इंदिरा इज इंडिया “ ….. स्टूडेंट का कहना कि ए क्लास तो चार्ल्स शोभराज के लिए हैं ……ऑपरेशन ब्लू स्टार की वजह बनने वाली हर चीज …. इंदिरा गांधी की हत्या….शो की कहानी में बुने गए सब कुछ स्वाभाविक लगते हैं !
किरदारों की बात करें तो छोटे से छोटे किरदार से लेकर अहम से अहम किरदारों तक, सभी महत्वपूर्ण बन पड़े हैं, चूँकि शो के तारतम्य में महत्ता सबों की हैं. सुनील गुप्ता की अंधविश्वास ग्रस्त पड़ोसन है जिसे गर्दिश में पड़े अपने सितारों को ठीक करने के लिए जेल का खाना चाहिए, फोनोफ्रेंड सरीखा प्रिया का किरदार है तो एक कहानी हट्टे कट्टे हरियाणवी डिप्टी जेलर और जेलर की बीवी की भी है. तिहाड़ में तीन गैंगों के मुखियाओं के किरदार भी दमदार है. निश्चित ही मेकर्स ने क्रिएटिव फ्रीडम ली है इन किरदारों को गढ़ने में, परंतु ओटीटी कल्चर के लिए एक्सप्लॉइट नहीं किया है. कुछेक बातें सच के परे होते हुए भी हैं सच के करीब लगती है. हाँ, चार्ल्स शोभराज जैसे दुर्दांत अपराधी के संग सुनील गुप्ता के ऐसे ताल्लुकात, मानो वह उनका मेंटर हो, समझ से परे हैं ! वह भी पहली मुलाक़ात के बाद उसके बारे में जान लेने के बाद ?
कास्टिंग लाजवाब है ! कह सकते हैं एक एक किरदार में एक एक नगीना चुना गया है ! अभिनेता शशि कपूर के पोते जहान कपूर को लिया है मोटवानी ने सुनील गुप्ता के रोल में और जहान ने बखूबी बता दिया है कि भले ही कद काठी सुपर सितारों जैसी नहीं, अदाकारी खूब है उसमें ! तीन डिप्टी जेलरों के सीनियर के किरदार में यदि राहुल भट्ट जबरदस्त है तो साथी सरदार डिप्टी जेलर के रोल में परमवीर चीमा और दुसरे डिप्टी जेलर हरियाणवी छोरे के रोल में अनुराग ठाकुर हैं और दोनों ही दिखा देते हैं कि "हम किसी से कम नहीं" ! चार्ल्स शोमराज बने सिद्धांत गुप्ता के लिए कहें कि वो एक सरप्राइज है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ! अन्य सभी कलाकार भी, और कहीं साधारण रह गए होंगे, यहां चुनिंदा साबित हुए हैं.
निःसंदेह शो, जैसा भी बना है, मास्टरपीस है, दर्शनीय है. जेल की अनदेखी दुनिया की सच्ची बानगी और बेहतरीन परफॉर्मेंस के लिए तकनीकी तौर पर मजबूत सधे हुए अंदाज में बनाई गई इस सीरीज को देखना ही चाहिए !
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