स्मार्ट फोन अनवांटेड फॉर 72 से मिलेगी मानसिक शांति !

Mobile Phone Addiction

संतुलित डिजिटल जीवन शैली केवल मानसिक शांति ही नहीं, बल्कि पारिवारिक रिश्तों को भी बचा सकती है, ऐसा दिमाग के एफएमआरआई(फ़ंक्शनल मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग) स्कैन की फाइंडिंग है.   

भले ही स्मार्ट फोन ने आज लोगों का काम आसान किया है पर साथ में उन्हें कई चीजों से वंचित भी किया है और अब उन्हें इस मुए की आदत सी हो गई है या कह सकते है लत लग गई है. जब हमें स्मार्ट फोन से वांछित इनफार्मेशन लेनी होती है, इसे ओपन करते हैं पर साथ में व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टा और मैसेज या पोस्ट भी चेक करने लगते हैं, भूल से जाते हैं कि  किस काम के लिए स्मार्ट फोन/मोबाइल खोला था. यही व्याकुलता है, एडिक्शन है. आजकल तो आम है किसी से बात कर रहे हैं तो वो स्मार्ट फोन में व्यस्त है, बातें सुन तो रहा होता है पर समझ नहीं रहा होता है चूंकि ध्यान तो फ़ोन की स्क्रीन पर है. ऐसे में जो कह रहा होता है, उसे कोफ़्त तो होगी ही ना ! थोड़ा कूल नहीं रख पाया तो रिएक्शन लाजिमी है.         

इन एडिक्टों को पूछो तो कहते हैं टाइम पास करने के लिए स्मार्ट फोन का प्रयोग करते है, चैटिंग करते है, पोस्ट करते हैं गेम खेलते हैं पर वे कितने बेखबर हैं कि ऐसा करते करते टाइम कैसे निकल गया और उनका स्मार्ट फोन उनके साथ ही टाइम पास कर गया ! आज ज्यादातर युवा वर्ग ऐसी ही डिजिटल चीजों में अपना समय खपाता है, जिस उम्र में उसे करियर पर फोकस करना चाहिए उस उम्र में वह इन पर फोकस करता है. 

नशा स्मार्ट फोन का ऐसा भारी हो रहा है कि किंचित रोका टोकी पर ही लती हिंसक हो उठता है. गाहे बगाहे ऐसी हिंसा की खबरें आती रहती है, इसी सप्ताह मध्य प्रदेश में एक किशोर ने  मोबाइल छोड़ नीट की तैयारी करने की नसीहत देने पर मां-बाप पर हमला कर दिया. मां की मौत हो गई और पिता आईसीयू में है. नजर दौड़ाइये स्मार्ट फोन/मोबाइल से चिपके बच्चे गांव-शहर की सीमा से परे हर जगह मिल जायेंगे. 

दरअसल आजकल सब फील करते हैं कि लाइफ का स्वीट कंटेंट बगैर Keeping calm in the Digital World है ही नहीं. कहावत भी है Healthy mind lives in a Healthy Body. जिस प्रकार बॉडी को हेल्दी रखने के लिए बॉडी डिटॉक्स की जरूरत है, उसी प्रकार हेल्दी माइंड के लिए माइंड डिटॉक्स की महत्ता है जो बगैर डिजिटल डिटॉक्स के संभव ही नहीं है. परंतु अमल विरले ही करते हैं, एडिक्शन जो भारी है.  मोबाइल फोन का ईजाद हमारी सुविधा के लिए किया गया था। इसका उद्देश्य था कि लोग आसानी से एक-दूसरे से संपर्क कर सकें, महत्वपूर्ण जानकारियां तुरंत प्राप्त की जा सके और ये हमारे कामकाज को आसान कर दे। ऐसा हुआ भी..लेकिन धीरे-धीरे ये सुविधा हमारी आदत बनी और फिर एक लत में बदल गई। ऐसी लत जिसने हमारा समय, ध्यान और जीवनशैली पर पूरी तरह कब्जा कर लिया है। ऐसे में अगर कोई 72 घंटे बिना मोबाइल फोन के रहने को कहे तो क्या जवाब होगा ? 

हालिया रिसर्च में ये बात सामने आई है कि अगर कोई सिर्फ तीन दिन के लिए अपने मोबाइल से दूरी बना लें तो उसके दिमाग पर इसका चमत्कारी असर हो सकता है. तो खबर बड़ी काम की है हम सब के लिए क्योंकि हर पल, खाते-पीते यहां तक कि बाथरूम में भी अपना स्मार्ट फोन चाहिए ......! 

हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक दिलचस्प अध्ययन किया जिसमें 18 से 30 साल के 25 युवाओं से कहा गया कि वे तीन दिन तक अपने स्मार्ट फोन से दूरी बनाए रखें.  हालांकि, ज़रूरत पड़ने पर परिवार या पार्टनर से बातचीत करने की अनुमति दी गई.  हीडलबर्ग और कोलोन यूनिवर्सिटी के इस प्रयोग से पहले और बाद में प्रतिभागियों के दिमाग का FMRI स्कैन और साइकोलॉजिकल टेस्ट किया गया. इसी के साथ उनकी मानसिक स्थिति, मोबाइल की लत और मूड में बदलावों क भी ट्रैक किया गया. 
तीन दिन बाद जब उनका दोबारा MRI स्कैन हुआ तो नतीजे चौंकाने वाले थे. स्मार्ट फोन के कम उपयोग से इनके दिमाग में डोपामाइन और सेरोटोनिन से जुड़े हिस्सों में सकारात्मक बदलाव नजर आया.  ये न्यूरोट्रांसमीटर मूड और इमोशन्स को कंट्रोल करते हैं और किसी लत से जुड़ी समस्याओं में अहम भूमिका निभाते हैं. ऐसे में रिसर्च में पाया गया कि मोबाइल छोड़ने से आश्चर्यजनक रूप से दिमाग पर वही असर पड़ा, जो किसी भी नशे की लत से बाहर निकलने पर महसूस होता है. 

स्पष्ट हुआ कि मोबाइल की लत का वही पैटर्न है जो नशे या शराब की लत का है, चूंकि ब्रेन के उन हिस्सों में बदलाव देखे गए, जो रिवॉर्ड (इनाम) और क्रेविंग (लालसा) से जुड़े होते हैं.  कुल मिलाकर शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि स्मार्टफोन का अधिक इस्तेमाल मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है.  छोटे छोटे डिजिटल ब्रेक, सीमित नोटिफिकेशन और स्क्रीन फ्री समय तय करना दिमाग के संतुलन को बेहतर बना सकता है. स्मार्टफोन और इंटरनेट की लत से थोड़ी दूरी बनाकर अंतर खूब महसूस किया गया है, नामचीन लोगों ने ज्ञान भी खूब दिया है मसलन सीनियर आईआईटियन नंदन नीलेकणि सरीखे ने जूनियर आईआईटियन टेक तनुज भोजवानी के साथ मिलकर लिखी किताब  "The Art of Bitfulness (keeping calm in the digital world)" में एज वाइज गुर बताएं हैं कि कैसे हम अपनी डिजिटल लाइफ को रेग्युलेट करें और क्यों करें ? अनेकों शोध पहले भी हुए हैं, परंतु इस एफएमआरआई आधारित रिसर्च ने तो आँखें खोल दी हैं और कह सकते हैं  Hence proved  मोबाइल से दूरी = मानसिक शांति ! 

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Prakash Jain

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