स्मार्ट फोन अनवांटेड फॉर 72 से मिलेगी मानसिक शांति !
8 Mar, 2025
संतुलित डिजिटल जीवन शैली केवल मानसिक शांति ही नहीं, बल्कि पारिवारिक रिश्तों को भी बचा सकती है, ऐसा दिमाग के एफएमआरआई(फ़ंक्शनल मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग) स्कैन की फाइंडिंग है.
भले ही स्मार्ट फोन ने आज लोगों का काम आसान किया है पर साथ में उन्हें कई चीजों से वंचित भी किया है और अब उन्हें इस मुए की आदत सी हो गई है या कह सकते है लत लग गई है. जब हमें स्मार्ट फोन से वांछित इनफार्मेशन लेनी होती है, इसे ओपन करते हैं पर साथ में व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टा और मैसेज या पोस्ट भी चेक करने लगते हैं, भूल से जाते हैं कि किस काम के लिए स्मार्ट फोन/मोबाइल खोला था. यही व्याकुलता है, एडिक्शन है. आजकल तो आम है किसी से बात कर रहे हैं तो वो स्मार्ट फोन में व्यस्त है, बातें सुन तो रहा होता है पर समझ नहीं रहा होता है चूंकि ध्यान तो फ़ोन की स्क्रीन पर है. ऐसे में जो कह रहा होता है, उसे कोफ़्त तो होगी ही ना ! थोड़ा कूल नहीं रख पाया तो रिएक्शन लाजिमी है.
इन एडिक्टों को पूछो तो कहते हैं टाइम पास करने के लिए स्मार्ट फोन का प्रयोग करते है, चैटिंग करते है, पोस्ट करते हैं गेम खेलते हैं पर वे कितने बेखबर हैं कि ऐसा करते करते टाइम कैसे निकल गया और उनका स्मार्ट फोन उनके साथ ही टाइम पास कर गया ! आज ज्यादातर युवा वर्ग ऐसी ही डिजिटल चीजों में अपना समय खपाता है, जिस उम्र में उसे करियर पर फोकस करना चाहिए उस उम्र में वह इन पर फोकस करता है.
नशा स्मार्ट फोन का ऐसा भारी हो रहा है कि किंचित रोका टोकी पर ही लती हिंसक हो उठता है. गाहे बगाहे ऐसी हिंसा की खबरें आती रहती है, इसी सप्ताह मध्य प्रदेश में एक किशोर ने मोबाइल छोड़ नीट की तैयारी करने की नसीहत देने पर मां-बाप पर हमला कर दिया. मां की मौत हो गई और पिता आईसीयू में है. नजर दौड़ाइये स्मार्ट फोन/मोबाइल से चिपके बच्चे गांव-शहर की सीमा से परे हर जगह मिल जायेंगे.
हालिया रिसर्च में ये बात सामने आई है कि अगर कोई सिर्फ तीन दिन के लिए अपने मोबाइल से दूरी बना लें तो उसके दिमाग पर इसका चमत्कारी असर हो सकता है. तो खबर बड़ी काम की है हम सब के लिए क्योंकि हर पल, खाते-पीते यहां तक कि बाथरूम में भी अपना स्मार्ट फोन चाहिए ......!
हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक दिलचस्प अध्ययन किया जिसमें 18 से 30 साल के 25 युवाओं से कहा गया कि वे तीन दिन तक अपने स्मार्ट फोन से दूरी बनाए रखें. हालांकि, ज़रूरत पड़ने पर परिवार या पार्टनर से बातचीत करने की अनुमति दी गई. हीडलबर्ग और कोलोन यूनिवर्सिटी के इस प्रयोग से पहले और बाद में प्रतिभागियों के दिमाग का FMRI स्कैन और साइकोलॉजिकल टेस्ट किया गया. इसी के साथ उनकी मानसिक स्थिति, मोबाइल की लत और मूड में बदलावों क भी ट्रैक किया गया.
तीन दिन बाद जब उनका दोबारा MRI स्कैन हुआ तो नतीजे चौंकाने वाले थे. स्मार्ट फोन के कम उपयोग से इनके दिमाग में डोपामाइन और सेरोटोनिन से जुड़े हिस्सों में सकारात्मक बदलाव नजर आया. ये न्यूरोट्रांसमीटर मूड और इमोशन्स को कंट्रोल करते हैं और किसी लत से जुड़ी समस्याओं में अहम भूमिका निभाते हैं. ऐसे में रिसर्च में पाया गया कि मोबाइल छोड़ने से आश्चर्यजनक रूप से दिमाग पर वही असर पड़ा, जो किसी भी नशे की लत से बाहर निकलने पर महसूस होता है.
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